Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
36 लक्षण का अन्तर्भाव हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि द्रव्य सत् है ऐसा द्रव्य का लक्षण कहने पर उत्पाद, व्यय, प्रौव्य में द्रव्य के लक्षण समाविष्ट हो जाते हैं, क्योंकि सत् कथंचित अनित्य होता है । नित्य कहने से ध्रौव्य और अनित्य कहने से पर्यायों का बोध होता है। ध्रौव्य कहने से गुणों का। अतः सिद्ध है कि उपर्युक्त द्रव्य के दोनों लक्षण एक ही हैं, उनमें शाब्दिक अन्तर है, वास्तविक नहीं है। द्रव्य की अन्य विशेषताएं : ___ द्रव्य स्वतंत्र होता है। द्रव्य स्वयंभू है। यह अविनाशी है। यह अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ता है। यह परिणामी है। द्रव्य-भेद :
प्रशमरति प्रकरण में द्रव्य का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया गया है, जो निम्नांकित
चेतन-अचेतन की अपेक्षा :
संक्षेप में द्रव्य दो प्रकार का है 80 - चेतन और अचेतन। चेतन को जीव और अचेतन को अजीव भी कहते हैं, क्योंकि जीव में चेतन गुण है और अजीव में चेतना गुण नहीं है। जिस द्रव्य मे चेतना गुण हो, वह चेतन द्रव्य है। जीव चेतन द्रव्य है। शेष धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, आकाशास्तिकाय,कालास्ति - ये पाँच अचेतन द्रव्य हैं।
द्रव्य
चेतन
अचेतन
जीवकायास्तिकाय
धर्मास्तिकाय
आकाशस्तिकाय
अधर्मास्तिकाय
पुद्गलास्तिकाय
कालास्ति