Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
32 कर्मों की निर्जरा की विधि पर प्रकाश डालते हुए बतलाया गया है कि संवरयुक्त मनुष्य ही कोंकी निर्जरा कर सकता हैं क्योंकि आसव के द्वार के बन्द हो जाने पर नये कर्मों का आगमन रुक जाता है और पूर्व बंधे हुए कर्म तपस्या के फलस्वरुप प्रतिक्षण नष्ट होते रहते हैं। जिस प्रकार बढ़ा हुआ भी अर्जीण खाना बन्द करके लंघन करने से प्रतिदिन क्षय होता है, उसी प्रकार संसार में भ्रमण करते हुए जीव जो ज्ञानावरणादि कर्म बाँध रखे है, चतुर्थक,
अष्टम, दशम एवं द्वादश आदि तपों के द्वारा वे नीरस हो जाते हैं, जिसके परिणाम स्वरुप बिना फल दिए ही वे कर्म, मसले गये फूल की तरह आत्मा से झड़ जाते हैं 59।
निर्जरा का प्रमुख कारण तप है। यह इच्छाओं का निरोथ करता है। इसके दो भेद हैं60(क) बाह्य तप और (ख) आभ्यन्तर तप । बाह्य पदार्थों के अवलम्बन से किया गया तप बाह्य तप एवं आन्तरिक अवलम्बन से किया गया तप, आभ्यान्तर तप है। ___ बाह्य तप के अनशन, अवमोदार्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रस त्याग, विविक्त शय्यासन, काय क्लेश- छह भेद हैं 61 आभ्यन्तर तप के भी छह भेद हैं- प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, ध्यान 62 । इस प्रकार तप निर्जरा का प्रमुख कारण है। बंध तत्व : ___ योग के व्यापार से कर्म-रज का बन्ध होता है। योग मन, वचन और काय की क्रिया है। जीव के अशुद्ध भावों से बन्थ होता है। अशुद्ध जीव कषाय से युक्त होता है। वह कर्मयोग्य पुद्गलों की ग्रहण करता है जिससे वह कर्मों से बँध जाता है। इस प्रकार कर्म-प्रदेशों का आत्म प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह हो जाना बंध है 63 । बंध भेद :
बन्ध के चार भेद हैं 64 - (क) प्रकृति बन्ध (ख) स्थिति बन्ध (ग) अनुभव बन्ध (घ) प्रदेश बन्थ। ये चारो कर्मबन्ध उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य (मंद) की अपेक्षा से तीन प्रकार के होते हैं। कर्म-बंध के कारण :
कर्म बंध का मूल कारण कषाय है। इसके प्रमुख अंग मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और योग हैं। कषाय मिथ्यात्व आदि की सहायता से आठ प्रकार के कर्मबंध के कारण होता है। इस प्रकार कषाय ही बंध का मूल कारण है । मोक्ष - तत्व :
यह एक महत्वपूर्ण तत्व है। बंध का विरोधी तत्व मोक्ष है। इसलिए बन्ध के बाद मोक्ष का कथन किया गया है जिसका उल्लेख इस प्रकार है
मोक्ष का अर्थ है मुक्त होना। संसारी आत्मा कर्मबन्थ से युक्त होता है । अतः आत्मा