Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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दूसरा अध्याय पंचेन्द्रिय जीव : . जिन जीवों को स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु, और श्रोत्र - ये पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं और जो स्पर्शन से स्पर्श, रसना से रस, घ्राण से गन्ध, चक्षु से रुप तथा श्रोत इन्द्रिय से शब्द को जान सकते हैं, उन्हे पंचेन्द्रिय जीव कहते हैं। जैसे- गााय, भैंस, बकरा, मेढ़क, गर्भज एवं समूर्छन जीव इत्यादि 32। (ग) गति की अपेक्षा जीव के भेद :
गति नाम कर्म के उदय से मृत्युपरांत एक भव को छोड़कर दूसरे भव को प्राप्त करना ही गति है। जीव की चार गतियाँ है 33-देव, मनुष्य, तिथंच, नारक। देवात्मा :
देव गति नाम कर्म के कारण देव गति में उत्पन्न होनेवाले आत्मा (जीव) को देव कहते हैं। देवों को चार समूहों में विभाजित किया गया है-भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक । भवनवासियों के असुर, कुमार आदि दस भेद हैं। व्यंतरों के आठ भेद हैं किन्नर, किन्नपुरुष, गन्धर्व, महोरग, यक्ष, राक्षस, भूत और पिसाच34 | ज्योतिषिक देव के पाँच भेद हैं35 - सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र एवं तारे। वैमानिक देवों के बारह भेद हैं 36 - सौधर्म, ऐशान, सानत कुमार, माहेन्द्र, बह्मोत्तर, लान्तव, काबिष्ट, शुक्, महाशुक्, शतार और सहस्त्रार आदि।
मनुष्यात्मा :
मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से मनुष्य पर्याय में उत्पन्न होने वाला जीव मनुष्य कहलाता है। मनुष्यों के आर्य, म्लेच्छ, गर्भज, संमूर्छन आदि भेद हैं 37 । तिथंचात्मा :
तिर्यच गति नाम कर्म के उदय से तिर्यंचपर्याय में उत्पन्न होनेवाला जीव तियेच जीव कहलाता है। इसके एकेन्द्रिय सूक्ष्म, एकेन्द्रिय बादर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय आदि भेद हैं 38 ।
नारकी आत्मा :
नरक गति नाम कर्म के उदय से नारकी पर्याय में उत्पन्न होनेवाला जीव(आत्मा) नारकी जीव कहलाता है। रत्नप्रभा आदि भूमियों की अपेक्षा से नारकी जीव के सात भेद हैं 39 । (घ) चर-अचर की अपेक्षा जीव के भेद :
चर - अचर की अपेक्षा जीव के दो प्रकार हैं - (1) चर जीव और अचर जीव 40 ।