Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
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होते तो आचार्य हरिभद्र उनका अवश्य किसी न किसी रूप में नाम उल्लेख करते, किन्तु, ऐसा नहीं हुआ हैं। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि प्रसिद्ध ग्रन्थ सभाष्यतत्वार्थधिगमसूत्र के रचयिता की यह कृति है ।
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प्रशमरति प्रकरण पर हरिभद्रीय टीका के अतिरिक्त अन्य जो भी टीकाएं और अवचूरियाँ लिखी गयी हैं उनमें से केवल एक अवचूरि प्राप्त हुई है। इसके रचयिता कौन हैं, यह भी अवचूरि से ज्ञात नहीं होता है। इस अवचूरि में लिखा गया है कि 'उमास्वाति वाचकाः - प्रशमरति प्रकरणं । इससे सिद्ध होता है कि सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्र की कारिकाओं और प्रशमरतिप्रकरण की कारिकाओं की भाषा- तुलना की समानता के आधार पर कहा जा सकता है कि दोनों ग्रन्थ के लेखक एक ही हैं। पं० नाथूराम प्रेमी ने भी कहा है-प्रशमरतिप्रकरण की तत्वार्थ - भाष्य के साथ बहुत समानता है। कहीं-कहीं दोनों के शब्द और भाषा बिल्कुल मिलते-जुलते हैं। भाष्य के प्रारम्भ और अन्त की कारिकाओं की रचना शैली भी प्रशमरति प्रकरण जैसी ही है। इसके सिवाय प्रशमरति प्रकरण की एक कारिका (25 वीं) जयधवालाकार ने भी उद्धृत की है। 2 आचार्य सिद्धसेन अपनी तत्वार्थसिद्धभाष्य - वृत्ति में प्रशमरतिप्रकरण को उमास्वाति वाचक की रचना माना है । 3 निशीथचूर्णि के कर्ता श्री जैनदास महत्तर ने भाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्र' और प्रशमरति प्रकरण की कारिकाओं को उद्धृत करते हुए दोनों ग्रन्थों को आचार्य उमास्वाति की रचना बतलाया है। 4
जैन धर्म के आधुनिक विद्वान् पं० सुखलाल संघवी ने तत्वार्थसूत्र की प्रस्तावना में लिखा है कि जिसे उमास्वाति की कृति मानने में संदेह का अवकाश नहीं, उस प्रशमरति प्रकरण ग्रन्थ में मुनि के वस्त्र, पात्र का व्यवस्थित निरुपण है, जिसे श्वेताम्बर परम्परा निर्विवाद रुप से स्वीकार करती है।
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उपर्युक्त मतों और प्रमाणों के आधार पर सिद्ध होता है कि प्रशमरति प्रकरण वाचक उमास्वाति की रचना है। उक्त प्रमाण एक ही सम्प्रदाय के आचार्य और विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किया गया है । परन्तु दूसरी ( दिगम्बरी) परम्परा इस संबंध में उनके तर्कों को मानने के लिए तैयार नहीं है ।
इस प्रकार मैं अपने अनुसंधान के आधार पर यह कह सकती हूँ कि भले ही श्वेताम्बर परम्परा तत्वार्थसूत्र के रचयिता उमास्वाति को ही इसका कर्ता माने, लेकिन मैं शंकाशील हूँ और इस ओर गहन एवं स्वतंत्र अनुशीलन की अपेक्षा होगी। पुनरपि बाधक प्रमाणों के अभाव में पंडित सुखलाल संघवी के मत को आधार मानकर प्रशमरति प्रकरण के कर्ता के रुप में आचार्य उमास्वाति को ही मानना उपयुक्त है।
उमास्वाति का व्यक्तित्व :
उपलब्ध समग्र जैन वाड्रमय के इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट पता चलता है कि जैनाचार्यों में उमास्वाति ही प्रथम संस्कृत भाषा के लेखक हैं। उनके ग्रन्थों की संक्षिप्त और