Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
अपभ्रंश भाषा में रचित वैराग्य विषयक साहित्य :
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अपभ्रंश भाषा में भी वैराग्य विषयक साहित्य की रचना की गयी है। आचार्य योगेन्द्र ने अपभ्रंश भाषा में परमात्म प्रकाश योगसार, अध्यात्म संदोह, अमृताशति, सुभाषित तंत्र ग्रन्थों की रचना कर वैराग्य के क्षेत्र में महान् योगदान किया है । युक्त सभी ग्रन्थों का विषय सांसारिक जीवों को मोक्ष प्राप्ति कराना है ।
हिन्दी भाषा में रचित वैराग्य मूलक साहित्य :
हिन्दी भाषा में भी अध्यात्म (वैराग्य) विषयक अध्यात्म सवैया, परमार्थगीत, परमार्थ दोहा शतक, बह्ममविलास, चित्तविलास, सख्य संबोधन, पदसाहित्य, रहस्यपूर्ण चिट्ठी, मोक्षमार्ग प्रकाश, सतसेयी बुधजन एवम् श्रीमद् राजचन्द्र की डायरी आदि ग्रन्थ हैं। इन सभी साहित्य का एक मात्र उद्देश्य भव्य प्राणियों को वैराग्य की ओर प्रेरित करना है।
संस्कृत भाषा में रचित वैराग्य विषयक साहित्य :
संस्कृत भाषा में भी अनेक वैराग्य विषयक साहित्य का सृजन हुआ है। आचार्य पूज्ययाद का इष्टोपदेश, समाधितंत्र, कविराज मल्ल रचित अध्यात्म कमलमार्तण्ड, पं० आशाधरकृत अध्यात्म रहस्य, शुभचन्द्र भट्टारक ( 16 वीं शताब्दी) के परमाध्यात्म तरंगिनी यशोविजय का अध्यात्म उपनिषद् एवम् अध्यात्मसार ऐसे ग्रन्थ हैं, जिनका विषय वैराग्य ( अध्यात्म) है।
वैराग्य विषयक साहित्य में प्रशमरति प्रकरण का स्थान :
प्रशमरति प्रकरण भी एक वैराग्य विषयक ग्रन्थ है जिसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। उसमें प्रशमरति की व्युत्पत्ति बतलाते हुए कहा गया है कि प्रशमरति - प्रशम और रति - शब्दों के मेल से बना है। यहाँ प्रशम का अर्थ है- वैराग्य और रति का अर्थ होता हैप्रेम । यानि प्रशम का शाब्दिक अर्थ हुआ - वैराग्य मे प्रेम । इस प्रकार राग-द्वेष के ही उत्कृष्ट शम में प्रीति करना प्रशमरति है। उसके पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख कर बतलाया गया है कि माध्यस्थ, वैराग्य, विरागता, शान्ति, उपशम, प्रशम, दोषक्षय, कषायविजय - ये सब वैराग्य के पर्यायान्तर हैं 58
इस ग्रन्थ का प्रमुख उद्देश्य भव्य प्राणियों को प्रशमसुख की ओर आकृष्ट कर वैराग्य मार्ग में दृढ़ करना है ताकि जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो सके 59 । इसलिए ग्रन्थकार ने अपने ग्रन्थ में संसार हेतु राग-द्वेष आदि का वर्णन कर जीवबंध की प्रक्रिया को भलीभांति समझाया है और राग-द्वेष को ही संसार की परम्परा का जनक मानकर उस पर विजय प्राप्त करने के लिए वैराग्य मार्ग पर चलना आवश्यक बतलाया है। इस ग्रन्थ में मुनि और श्रावकों के आचार का विशुद्ध विवेचन हुआ है और मुनियों की मोक्ष प्राप्ति हेतु गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, त्रिरत्न, महाव्रत आदि पालन करने की प्रेरणा दी गयी है। उक्त