Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित: 39 'एषा' संस्कृत सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप- (पुल्लिंग में) 'एस' होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-८५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में मूल - सर्वनाम रूप 'एत्त्' के स्थान पर 'सि' प्रत्यय का योग होने पर 'एस' आदेश होकर 'एस' रूप सिद्ध हो जाता है।
'तरणिः' संस्कृत स्त्रीलिंग वाला रूप है। इसका प्राकृत (पुल्लिंग में) रूप 'तरणी' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-३१ से 'तरणि' शब्द को स्त्रीलिंगत्व से पुल्लिंगत्व की प्राप्ति और ३- १९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर 'तरणी' रूप सिद्ध हो जाता है ।१ - ३१ ।। स्नमदाम - शिरो - नभः ।। १–३२ ।।
दामन् -शिरस्-नभस्-वर्जितं सकारान्तं नकारान्तं च शब्दरूपं पुंसि प्रयोक्तव्यम्।। सान्तम्। जसो। पआ। तमो । तेओ । उरो ।। नान्तम्। जम्मो । नम्मो मम्मो ॥ अदाम शिरो नभ इति किम् । दाम । सिरं । नहं । यच्च सेयं वयं सुमणं सम्मं चम्ममिति दृश्यते तद् बहुलाधिकारात्।।
अर्थः- दामन्, शिरस् और नभस् इन संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त जिन संस्कृत शब्दों के अन्त में हलन्त 'स्' अथवा हलन्त 'न्' हैं; ऐसे सकारान्त अथवा नकारान्त संस्कृत शब्दों का प्राकृत रूपान्तर करने पर इनके लिंग में परिवर्तन हो जाता है; तदनुसार ये नपुंसकलिंग से पुल्लिंग बन जाते हैं। जैसे- सकारान्त शब्दों के उदाहरण यशस्= जसो; पयस्-पओ; तमस=तमो; तेजस्-तेओ; उरस्-उरो; इत्यादि । नकारान्त शब्दों के उदाहरण- जन्मन्- जम्मो; नर्मन्नम्मो और मर्मन्-मम्मो; इत्यादि।
प्रश्न- दामन्, शिरस् और नभस् शब्दों का लिंग परिवर्तन क्यों नहीं होता है ?
उत्तर- ये शब्द प्राकृत-भाषा में भी नपुंसकलिंग वाले ही रहते हैं; अतएव इनको उक्त 'लिंग परिवर्तन' वाले विधान से पृथक् ही रखना पड़ा है। जैसे:- दामन् -दामं; शिरस् - सिरं और नभस् - नहं । अन्य शब्द भी ऐसे पाये जाते हैं; जिनके लिंग में परिवर्तन नहीं होता है; इसका कारण 'बहुलं' सूत्रानुसार ही समझ लेना चाहिये। जैसे- श्रेयस् सेयं; वयस् वयं; सुमनस=सुमणं; शर्मस्-सम्मं और चर्मन् - चम्मं; इत्यादि । ये शब्द सकारान्त अथवा नकारान्त हैं और संस्कृत भाषा में इनका लिंग नपुंसकलिंग है; तदनुसार प्राकृत रूपान्तर में भी इनका लिंग नपुंसकलिंग ही रहा है; इनमें लिंग का परिवर्तन नहीं हुआ है; इसका कारण 'बहुलम्' सूत्र ही जानना चाहिये । भाषा के प्रचलित और बहुमान्य प्रवाह को व्याकरणकर्त्ता पलट नहीं सकते हैं। 'जसो ' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है।
'पयस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'य्' का लोप; १-११ से 'स्' का लोप; १-३२ से नपुंसकलिंगत्व से पुल्लिंगत्व का निर्धारण; ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'पओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'तमो' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १ - ११ में की गई है।
'तेजस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'तेओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'ज्' का लोप; १-११ से अन्त्य ‘स्' का लोप; १-३२ से पुल्लिंगत्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'तेओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'उरस' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'उरो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - ११ से अन्त्य 'स्' का लोप; १-३२ से पुल्लिंगत्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'उरो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'जम्मो' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १ - ११ में की गई है।
'नर्मन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'नम्मो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; २-८९ से
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