Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 269
के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'वक्खाण' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'व्याघ्रः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'वग्घो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य्' का लोप; १-८४ से शेष 'वा' में स्थिति दीर्घस्वर 'आ' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; २-७९ से 'र' का लोप २-८९ से 'घ' को द्वित्व 'घ्घ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'घ्' को 'ग्' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'वग्यो' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'मूच्छा' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मुच्छा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; और १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति होकर 'मुच्छा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'निज्झरो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-९८ में की गई है। कटुं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-३४ में की गई है। तित्थं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-८४ में की गई है।
'निर्धनः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'निद्धणो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से शेष 'ध' को द्वित्व 'ध्ध' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व'ध्' को 'द्' की प्राप्ति; १-२२८ से द्वितीय 'न' को 'ण' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर '
निधणा' रूप सिद्ध हो जाता है। __'गुल्फम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गुप्फ' होता हैं। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'ल' का लोप; २-८९ से शेष 'फ' को द्वित्व 'फ्फ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'फ्' को 'प्' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'गुप्फ रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'निर्भरः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'निब्भरा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से शेष 'भ' को द्वित्व'भूभ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व' को 'ब' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'निब्भरो' रूप सिद्ध हो जाता है।
जक्खो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-८९ में की गई है। अच्छी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३३ में की गई है। मझं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-२६ में की गई है। पट्ठी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२९ में की गई है। कुड्डो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१३१ में की गई है। हत्था रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-४५ में की गई है। आलिद्धा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-४९ में की गई है। पुष्पं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२३६ में की गई है। भिब्मला रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-५८ में की गई है।
ओक्खलं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७१ में की गई है। 'नखः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'नक्खा ' और 'नहो' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-९९ से 'ख' को द्वित्व 'ख् ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क्' की प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन
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