Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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परिशिष्ट-भाग : 387
कुड्डं
किडी किणा किणो कित्ती किर
किरायं
कुमरो
किरिआ
कुमुअं
किल
किलन्तं किलम्मद
कुलं
किलिटुं
किलित्त किलिन्न किलिनं किलेसो
किवा किवाणं किविणा किवो
पुं. (किरिः) सूकर-सूअर; १-२५१। सर्व (केन) किस से? किसके द्वारा; ३-६९। कुढारो अ. (प्रश्न-वाचक अर्थ में) क्या; क्यों; २-२१६। कुणति स्त्री (कीर्तिः) यश-कीर्ति; २-३०।
कुणवं अ. (किल) संभावना, निश्चय, हेतु, संशय, कुदो पाद-पूर्ण आदि अर्थों में; १-८८, २-१८६। कुप्पासो न पुं.(किरातम्) अनार्य देश विशेष अथवा भील को; १-१८३। स्त्री (क्रिया) क्रिया, काम, व्यापार, चारित्र आदि; २-१०४। अ. (किल) संभावना, निश्चय, हेतु, संशय, पाद
कुम्पलं पूर्ति आदि अर्थो में २-१८६।।
कुम्भआरो वि (क्लान्तम्) खिन्न; श्रान्त; २-१०६।
कुम्भआरो अक (क्लाम्यति) वह क्लान्त होता है; वह खिन्न
कुम्हाणो होता है; २-१०६। वि (क्लेिष्टम्) क्लेश-जनक; कठिन, विषम; कुलो २-१०६।
कुल्ला वि (कलृप्त) कल्पित; रचित; १-१४५/
कुसुम वि (क्लिन्न) आर्द्र; गीला; १-१४५।
कुसुमपयरो वि (क्लिन्नम्। आर्द्र; गीला; २-१०५, १०६।। पु. (क्लेशः) खेद, थकावट, दु:ख, बाधा; कुसो २-१०६। स्त्री (कृपा) दया, मेहरबानी; १-१२८।। न. (कृपाणम्) खड्ग, तलवार; १-१२८| केढवो पुं. वि. (कृपणः) कृपण; कंजूस; १-४६, १२८। केत्तिअं पुं. (कृप.) कृपाचार्य, नाम विशेष; १-१२८ न. (केसरम्) पुष्प-रेणु; स्वर्ण; छंद-विशेष केरिसो १-१४६
केलं स्त्री (कसरा) खिचड़ी; १-१२८।।
केलासो किसलय न (किसलयम्) कोमल पत्ती, नूतन अंकुर; १-२६९।
केली स्त्री. (कृशा) दुर्बल स्त्री; १-१२७॥
केवट्टो पुं. (कृशानुः) आग; वृक्ष-विशेष तीन की संख्या; केसरं १-१२८। वि (कृषितः) खींचा हुआ; रेखा किया हुआ; जोता केसुअं हुआ; १-१२८। न (किंशुकम) ढाक; वृक्ष-विशेष; १-२९,८६।। वि (कृशः) पतला, दुर्बल; १-१२८। । अ क्रि (क्रीडति) वह खेलता है; १-२०२। न. (कुतुहलम्) कौतुक, परिहास; अपूर्व वस्तु केण देखने की लालसा; १-११७॥
केणावि न (कुंकम) सुगन्धी द्रव्य विशेष; २-१६४। कस्स स्त्री. (कुक्षिः ) कोख; १-३५, २-१७॥ न (कौक्षेयकम्) पेट पर बंधी तलवार; १-१६१; कत्तो २-१७ पुं. (कुब्जक) कूबड़ा, वामन; १-१८१॥
कोउहल्लं पु. (कजरः) हाथी; १-६६। न. (कुड्यम्) भित्ति; भीत; २-७८ ।
कोऊहल
देशज न (?) आश्चर्य,कौतुक, कुतूहल; २-१७४। पु. (कुठारः) कुल्हाडा; फरसा; १-१९९। सक. (कुर्वन्ति) वे करते हैं; १-८५ वि. (कुणपम्) दुर्गन्धी; मृत शरीर; मुर्दा; १-२३१ । अ. (शौर) (कुतः) कहां से? १-३७। कुप्पिसो पुं. (कूसः) कंचुक; कांचली, जनाना कुरती; १-७२। कुमारो पु. (कुमारः) प्रथम वय का बालक; अविवाहित; १-६७। न (कुमुदम्) चन्द्र-विकासी कमल; २-१८१ । पुं. न. (कुड्मलम) कलि, कलिकाः १-२६। २-५२। पुं. (कुम्भकारः) कुम्भकारः १-८) कुम्भारो पुं. (कुम्भकारः) कुम्भकार; १-८। पुं. (कुश्मानः) देश-विशेष; २-७४। न (कुलम्) कुल, वंश, जाति, परिवार; १-३३। पुं. (कुलम्) कुल, वंश जाति, परिवार, १-३३। स्त्री. (कुल्या) छोटी नदी; बनावटी नदी; २-७९ । न (कुसुम) पुष्प-फूल; १-९१, १४५। कुसुमप्पयरो पु. (कुसुम-प्रकरः) पुष्प-समूह २-९७/ पुं (कुशः) तृण-विशेष; राम के एक पुत्र का नाम; १-२६०। अ (ईषत्) थोड़ा सा; २-१२९।
(कैटभः) दैत्य-विशेष; १-१४८, १९६, २४०। केत्तिलं, केद्दहं वि (कियत्) कितना; २-१५७। न. (कैरवम्) कमलः कुमुद; १-१५२। वि (कीदृशः) कैसा, किस तरह का; १०५; १४२। न (कदलम्) कदली-फल; केला; १-१६७। पु. (कैलासः) मेरू-पर्वत, हिमालय की चोटी विशेष; १-१४८, १५२। स्त्री. (कदली) केले का गाछ; १-१६७, २२० । पुं (कैवत्:) धीवर; मच्छी मार; २-३०। न (केसरम्) पुष्प-रेणु; स्वर्ण; छन्द-विशेष; १-१४६) न. (किंशुकम्) ढाक; वृक्ष-विशेष; १-२९, ८६। सर्व (कृ:) कौन; २-१९७) सर्व (किम्) क्या; १-२९। सर्व (किम्) क्या; १-२९, ४१, ४२; २-८९, १९३, १६९, २१४, २०५। सर्व (केन) किसके द्वारा; २-१९१। सर्व पु. (केनापि) किसी के भी द्वारा १-४१ । सर्व (कस्य अथवा कस्मै) किसका अथवा किसके लिये; २-२०४। अ. (कुतः) कहां से; किस तरफ से; २-१६०। कदो अ कहां से; किस तरफ से; २-१६० । नं (कुतूहलम्) कौतुक; परिहास; १-११७, १७१; २-९९) न (कुतूहलम्) कौतुक; अपूर्व वस्तु देखने की
केरवं
किसर
किसरा किसलं
किसा
किसाणू
किसिआ
किंसुअं किसो कीलइ कुऊहलं
कि
कुंकम
कुच्छी कुच्छेअयं
कत्तो
कुज्जय कुंजरो कुड्ड
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