Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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412 : प्राकृत व्याकरण
वसहो वह
विउअं
वहु
वहुत्तं वहुमुह
वाइएण वाउलो वाउल्लो वाणारसी वामेअरो वायरणं
विज्जं
वारं
वारणं
वारिमई
निवास;१-२१४
विशेष; १-१७७। पुं. (वृषभ्) बेल; १-१२६, १३३।
विआरूल्लो वि (विकारवान्) विकार वाला, विकारयुक्त; (धातु) धारण करने आदि अर्थ में।
२-१५९। वहसि सक (वहसि) तू पहुंचाता है, तू धारण विइण्हो वि (वितृष्णः) तृष्णा रहित, निस्पृह; १-१२८ करता है; २-१९४।
वि. (विवृतम्) विस्तृत, व्याख्यात, खुला हुआ वहइ सक (वहति) वह धारण करता है; १-३८
१-१३१॥ स्त्री. (वधूः) बहू; १-६।
विउसग्गो पुं (व्युत्सर्गः) परित्याग, तप-विशेष; २-१७४ । वहुआइ स्त्री (वध्वा; वधूकायाः) बहू के १-७। विउसा वि (विद्वांसः) विज्ञ, पण्डित; २-१७४ | वि (प्रभुत्तम्) बहुत प्रचुर; १-२३३; २९८॥ विउहो वि पु. (विबुधः) पण्डित, विद्वान्, देव, सुर; वहूमुहं न. (वधू-मुखम्) बहू का मुख; १-४!
१-१७७) अ. (वा) अथवा; १-६७।।
विओओ पु. (वियोगः) जुदाई, बिछोह, विरह; १-१७७। न (वाचितेन) पढ़े हुए से; बाँचे हए से; २-१८९। विकासरो पु (विकस्वरः) खिलने वाला; १-४३। वि (वातूलः) वात-रोगी, उन्मत्तः१-१२९; २-९९। विक्कवो वि (विक्लव:) व्याकुल, बेचैन; २-७९। वि (वातूलः) वात-रोगी, उन्मत्तः २-९९। विंचुओ पु. (वृश्चिक:) बिच्छू; २-१६। स्त्री. (वाणारसी) बनारस; २-११६।
विच्छड्डो पु. (विच्छ्र्दः ) ऋद्वि, वैभव, संपत्ति, विस्तार; वि पुं. (वामेतरः) दाहिना; १-३६।
२-३६। न (व्याकरणम्) व्याकरण, कथन, प्रतिपादन; विजणं न (व्यंजनम्) पंखा; १-१७७। १-२६८
पुं. (विद्वान्) पण्डित, जानकार; २-१५। न. (द्वारम्) दरवाजा; १-७९।
विज्जू स्त्री (विद्युत्) बिजली; १-१५; २-१७३। न (व्याकरणम्) व्याकरण, कथन, प्रतिपादन, विज्जुणा विज्जूए स्त्री (विद्युता) बिजली से; १-३३। उपदेश; १-२६८।
विज्जुला स्त्री विद्युत्) बिजली; १-६; २-१७३। वारीमई, स्त्री. (वारिमतिः) पानी वाली; १-४। विज्झाइ अक (विष्माति) बुझता है, ठण्डा होता है, गुल वारिहरो पुं. (वारिधरः) बादल।
होता है; २-२८। वि (व्याप्तः) किसी कार्य में लगा हुआ; १-२०६। विञ्चुओ पुं. (वृश्चिकः) बिच्छू; १-१२८; २-१६; ८९ वासेसी, पुं. (व्यासर्षिः) व्यास-ऋषि १-५।। विच्छओ पुं. (वृश्चिकः) बिच्छू; १-२३। न (वर्ष-शतम्) सौ वर्ष; २-१०५।
विछिओ पुं. (वृश्चिक) बिच्छू; १-२६ । पुं (वर्षः) एक वर्ष; १-४३।।
पुं (विन्धयः) विन्ध्याचल पर्वत; १-४२। न (वर्षम्) वर्ष; २-१०५।
विंझो
पुं (विन्धयः) विन्ध्याचल पर्वत; व्याध; १-२५, पुं. (वर्षा;) अनेक वर्ष; १-४३; २-१०५।
२-२६, ९२। वाहित्तो वि (व्याहतः) उक्त, कथित; २-९९। विट्ठी स्त्री (वृष्टिः ) वर्षा, वारिस; १-१३७/ वि (व्याहतम्) कहा हुआ; १-१२८।
वि (वृष्टिः ) बरसा हुआ; १-१३७) पुं. (व्याघ्रः) लुब्धक,शिकारी, बहेलिया;१-१८७।। विड्डा स्त्री. (व्रीडा) लज्जा, शरम; २-९८। वि (बाह्यः) बाहिर का; २-७८|
विडिडर वि (व्रीडावाला) लज्जा वाला; २-१७४ । अ. (अपि) भी; १-६,३३,४१,९७; २-१९३,१९५, विणओ पुं (विनयः) नम्रता; १-२४५। २१८।
विणोअ पु. (विनोद) खेल, क्रीडा, कौतुक, कुतूहल; अव (इव) उपमा, सादृश्य, तुलना, उत्प्रेक्षा
१-१४६/ अर्थक अव्यय; २-१८२।।
विण्टं न (वृन्तम्) फल-पत्र आदि का बन्धन; १-१३९ । पु.न. (विचकिल) पुष्पविशेष, वृक्ष विशेष; विण्णाणं न (विज्ञानम्) सद्बोध, विशिष्ट ज्ञान; २-४२; १-१६६। वि (विकट) प्रकट, खुला, प्रचण्ड, १-१४६। विण्णायं न (विज्ञातम्) जाना हुआ, विदित; २-१९९। स्त्री (वितर्दिः) वेदिका, हवन-स्थान; २-३६।।
पुं. (विष्णुः) व्यक्ति विशेष का नाम; १-८५। वि (विदग्धः) निपुण, कुशल, पंडित; २-४०।
२-७५। पु.न (व्यञ्जनम्) पंखा; १-४६।
वित्ती
स्त्री. (वृत्तिः) जीविका, निर्वाह-साधन; १-१२८ । स्त्री. (वेदना) ज्ञान, सुख-दु:ख आदि का वित्तं न (वृत्तम्) वृत्ति, वर्तन; १-१२८। अनुभव, पीड़ा; १-१४६।
विदुरो वि (विदुरः) विचक्षण, धीर, नागरिक; १-१७७। कुसुम-सरो वि (विकसित कुसुमशरः) खिले हुए विद्दाओ वि (विद्रुतः) विनष्ट, पलायित; १-१०७। फूल रूप बाण वाला; १-९१।।
वि (वृद्ध) वृद्धि-प्राप्त, निपुण; १-१२८; २-४। न (वितानम्) विस्तार; यज्ञ, अवसर, आच्छादन विप्पवो पु. (विप्लवः) देश का उपद्रव; विविध झगड़े
वावडो वासइसी वाससयं वासो वासं वासा वाहिओ वाहित्त वाहो वाहो वि
विंझ
वि?
विअ
विअइल्ल
८३॥
विण्हू
विअड विअड्डी विअड्डो विअणं विअणा
विअसिअ
विद्ध
विआणं
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