Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text ________________
पडिहारो
पडिहासो
पविच्छिर पढइ
पढमो
पदुमं
पणट्ट
पणवण्णा
पणवह
पण्डवो
पण्णरह
पण्णा
पण्णासा
पण्णा
पण्णा
पन्हुओ
पण्हो
पत्
पतुं
पत्तेअं
पत्तो
पत्थरो
पत्थवो
पन्ति
पन्ती
पन्थो
पन्थं
पमुक्क पम्मुक्क
पम्हल
पम्हाई
पयट्टइ
पयट्टो
पयर्ड
पययं
पयरणं
पयरो
पु (प्रतिहार : ) द्वारपाल १ - २०६ ।
पयरो
पु (प्रतिभासः) प्रतिभास, आभास, मालूम होना पवाई
१- २०६।
पयागजलं
देशज वि (2) सदृश, समान २ १७४। सक, ( पठति) वह पढ़ता है: १ १९९, २३१। वि (प्रथम) पहला आध्य १-२१५ ॥
पयारो
पावई
पढमं विन (प्रथमम् ) पहला १-५५। विन (प्रथमम् ) पहला १-५५/
वि (प्रनष्ट) अधिक मात्रा में नाश प्राप्त ११८७१ देशज स्त्री न (पञ्च पञ्चाशत् ) पचपन; संख्या विशेष २-१७४॥
सक (प्रणमत) नमस्कार करें; २-१९५।
पु (पाण्डवः) राजा पाण्डु का पुत्र १-७०१ वि (पञ्चदश) पन्द्रह : २-४३ ।
स्त्री (प्रज्ञा) बुद्धि, मति २-४२, ८३
देशज स्त्री (पञ्चाशत्) पचास २-४३।
पु. ( प्राज्ञः) बुद्धिमान १-५६॥
स्त्री प्रश्न) प्रश्न १-१५॥
परमं
परम्मुहो परहूओ
वि (प्रस्तुत) झरा हुआ; जिसने झरने को प्रारम्भ परामरिसो
किया हो; २७५॥
पु (प्रश्नः) प्रश्न १-३५ २७५॥
परामुटो
परिघट्ट
परिद्वविओ
पडिया वि (पतिता) गिरी हुई गिरे हुए; २-८० ।
"नि" उपसर्ग के साथ में
निवडई अकु (निपतति) वह नीचे गिरता है;
१- ९४1
पत्तलं न (पत्रम्) जिस पर लिखा जाता है वह
कागज, पत्ता, २- १७३ ।
विन (प्रत्येकम् ) हर एक, २- २१०१
वि ( प्राप्तः ) मिला हुआ; पाया हुआ; २-१५ ।
पु (प्रस्तर) पत्थर २-४५१
पत्थावो पु (प्रस्तावः) अवसर, प्रसंग, प्रकरण;
१-३८१
स्त्री (पंक्ति) कतार, श्रेणी; १-६ ॥ स्त्री (पंक्ति) कतार, श्रेणी १-२५१
पु (पान्थः) पथिक, मुसाफिर; १-३०।
पु (पन्थम्) मार्ग को १-८८१
वि (प्रमुक्तम्) परित्यक्त २-९७१
वि (प्रमुक्तम्) परित्यक्त २ ९७१
वि (पक्ष्मल) सुन्दर केश और सुन्दर आंखों वाला;
२-७४।
पुन (पक्ष्माणि) आंखों के बाल; भौंह; २-७४ | अक (प्रवर्तते) वह प्रवृत्ति करता है; २-३०। वि (प्रवृतः ) जिसने प्रवृत्ति की हो वह २ २९ ।
पर
पर
परउट्टो
परक्क
Jain Education International
परिट्ठा, परिट्ठाविओ
परिट्टि
परिणामो
परोप्परं
परोप्पर
परोहो
पलक्खो
पलय
पलही पलिअंडो
पलिअं
पलितं
पलिलं
पलिविअं
पलीवइ
(प्रकटम् ) प्रकट, व्यक्त, खुला; १-४४। वि (प्राकृतम्) स्वाभाविक: १-६७१
न प्रकरणम्) प्रस्ताव, प्रसंग, एकार्थ प्रतिपादक ग्रन्थ १- २४६ ।
पलोएसु
पल्लङ्की
पु (प्रकार) भेद, किस्म, ढंग, रीति, तरह; १- ६८ । पल्लट्टो
परिशिष्ट-भाग 401
पु (प्रचारः) प्रचार, फैलाव; १- ६८ । पु (पदातिः) पैदल सैनिक; २ - १६८ । न (प्रयाग जलम् ) गंगा और यमुना के जल का संगम, १--१७७ ।
पु (प्रकार अथवा प्रचारः) भेद, ढंग अथवा प्रचार; १-६८ ।
पु (प्रजापतिः) ब्रह्मा अथवा कुम्भकार; १-१७७,
१८० ।
पारिज्जइ २ - २०८
वि (पर) अन्य, तत्पर, श्रेष्ठ प्रकर्ष, दूरवर्ती, अनात्मीय; २- ७२, ८७
पु (परपुष्ट) अन्य से पालित, कोयल पक्षी;
१-१७९।
वि (परकीयम्) दूसरे का; दूसरे से संबंधित
२- १४८।
वि (परमं ) श्रेष्ठ; २- १५/
पुवि (पराङ्गमुख) विमुख, फिरा हुआ; १-२५। पु (परभृतः) कोयल १-१३१ ॥
पु ( परामर्श:) विचार, युक्ति; स्पर्श, न्यायशास्त्रोक्त व्याप्ति २ - १०५ ॥
वि (परामृष्टः ) विचारित, स्पष्ट किया हुआ;
१-१३१।
वि (परिघृष्टम् ) जिसका घर्षण किया गया हो वह;
२-१७४।
वि (प्रतिस्थापितः ) विरोधी - रूप से स्थापित;
१-६७/
स्त्री (प्रतिष्ठा) प्रतिष्ठा; १-३८ ।
वि (प्रतिस्थापित ) विरोधी रूप से स्थापितः १६७१
वि (प्रतिष्ठितम्) रहा हुआ; १-३८ ।
पु (परिणामः) फल; २ - २०६ ।
वि (परस्परम् ) आपस में १ ६२, २-५३। वि (परस्पर) आपस में १-८।
पु (प्ररोह :) उत्पत्ति, अंकुर; १ - ४४।
पु (प्लक्ष) बढ़ का पेड़ २१०३।
पु (प्रलय) युगान्त, विनाश; १-८७ । देशज पु (कर्पासः) कपास; २-१७४। पु ( पर्यङ्कः) पलंग, खाट; २-६८ ।
न (पलितम्) वृद्ध अवस्था के कारण बालों का पकना, बदन की झुर्रियां १ - २१२ ।
वि. (प्रदीप्तम्) ज्वलित; १-२२१।
न (पलितम्) वृद्ध अवस्था के कारण से बालों का श्वेत हो जाना; १ - २१२ ॥
वि (प्रदीपितम् ) जलाया हुआ १-१०१। पलीवेइ सक (प्रदीपयति) वह जलाता है, सुलगाता है; १-१२१ ।
सक (प्रलोकय) देखो; २ - १८१ ।
पु ( पर्यङ्को) पलंग, खाट २-६८।
वि ( पर्यस्तः) क्षिप्त, विक्षिप्त, हत, पतित; २-४७ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454