Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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98 : प्राकृत व्याकरण
प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मोल्लं' रूप सिद्ध हो जाता है।।। १-१२४||
स्थूणा-तूणे वा ।। १ -१२५।। अनयोरूत ओत्वं वा भवति। थोणा थूणा। तोणं तूण।। अर्थः- स्थूणा ओर तूण शब्दों में रहे हुए 'ऊ' का विकल्प से 'ओ' होता है। जैसे-स्थूणा-थोणा और थूणा। तूणम् तोणं और तूण।।
स्थूणा संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप थोणा और थूणा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'स्' का लोप; १-१२५ से 'ऊ' का विकल्प से 'ओ' होकर थोणा और थूणा रूप सिद्ध हो जाते हैं।
तूणं संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप तोणं और तूणं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१२५ से 'ऊ' को विकल्प से 'ओ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'तोणं' और 'तूणं रूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-१२५।।
ऋतोत्।। १-१२६॥ आदेकारस्य अत्वं भवति। घृतम्। घय।। तृणम्। तणं। कृतम्। कयं। वृषभः।। वसहो।। सृगः। मओ।। घृष्टः। घट्टो।। दृहाइअमिति कादिपाठात्।।
अर्थः- शब्द में रही हुई आदि 'ऋ' का 'अ' होता है। जैसे - घृतम् घयं।। तृणम्-तणं।। कृतम् कयं।। वृषभः वसहो मृगः=मओ।। घृष्टः-घटो।। द्विधा-कृतम् दुहाइअं इत्यादि शब्दों की सिद्धि कृपादि के समान अर्थात् सूत्र-संख्या १-१२८ के अनुसार जानना।
घृतम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'घयं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-१२६ से 'ऋ'का 'अ'; १-१७७ से "त' का लोपः १-१८० से शेष 'अ'का 'य': ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर घयं रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'तुणम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'तणं' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'कृतम्' संस्कृत अव्यय है इसका प्राकृत रूप कयं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १–१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-१७७ से 'त्' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' का 'य'; और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'कयं रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'वृषभः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'वसहो' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-२६० से 'ष' का 'स'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वसहो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'मृगः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मओ' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-१७७ से 'ग' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'मओ' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'घृष्टः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'घट्टो' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १–१२६ से 'ऋ' का 'अ'; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ट्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' का 'ट्'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'घट्टो' रूप सिद्ध हो जाता है।
दुहाइअंशब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-९७ में की गई है।।१-१२७।।
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