Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 163
से 'श' का 'स; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर वलिस और वडिसं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दाडिमम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप दालिम और दाडिमं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२०२ से वैकल्पिक विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से दालिम और दाडिमं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
गुडः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप गुलो और गुडो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२०२ से वैकल्पिक विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुडो और गुलो रूप सिद्ध हो जाते हैं।
नाड़ी संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप णाली और णाडी होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और १-२०२ से वैकल्पिक-विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति होकर णाली
और णाडी रूप सिद्ध हो जाते हैं। __नडम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप णलं और णडं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण'
की प्राप्ति;; १-२०२ से वैकल्पिक-विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर णलं और णडं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
आमेलो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१०५ में की गई है।
आपीडः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप आमेडो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३४ से वैकल्पिक रूप से 'प्' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-१०५ से 'ई' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आमेडो रूप सिद्ध हो जाता है।
निबिडम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप निबिडं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर निबिडं रूप सिद्ध हो जाता है।
गउडो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१६२ में की गई है।
पीडितम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप पीडिअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पीडिअंरूप सिद्ध हो जाता है।
नीडं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१०६ में की गई है।
उडुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उडू होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' की दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर उडू रूप सिद्ध हो जाता है।
तडिद् (अथवा तडित्) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तडी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से 'द्' अथवा 'त्' का लोप; और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ 'ई' की प्राप्ति होकर तडी रूप सिद्ध हो जाता है।।।१-२०२।।
वेणौ णो वा।। १-२०३।। वेणौ णस्य लो वा भवति॥ वेलू। वेणू।।
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