Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 115
विकट-चपेटा विनोदा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विअड-चवेडा-विणोआ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१९५ से 'ट्' का 'ड्'; १-२३१ से 'प्' का 'व्'; १-१९५ से 'ड' का 'द्'; १-२२८ से 'न' का 'ण' और १-१७७ से 'द्' का लोप होकर विअड-चवेडा-विणोआ रूप सिद्ध हो जाता है।
देवरः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप दिअरो और देवरो होते है। इसमें सूत्र-संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; १-१७७ से 'व' का विकल्प से लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दिअरो और देवरो रुप सिद्ध हो जाते हैं।
मह महित संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप मह महिअ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप होकर मह महिअ रूप सिद्ध हो जाता है। __ दशन संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप दसण होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; और १-२८ से 'न' का 'ण' होकर दसण रूप सिद्ध हो जाता है। ___ केसरम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप किसरं और केसरं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर क्रम से किसरं और केसरं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
महिला संस्कृत शब्द है इसका प्राकृत रूप महिला ही होता है। इसी प्रकार से महेला भी संस्कृत शब्द है और इसका प्राकृत रूप भी महेला होता है। अतएव इन शब्दों में 'ए' का 'इ' होना आवश्यक नहीं है।।१-१४६।।
ऊः स्तेने वा ।। १-१४७ ।। स्तेने एत ऊद् वा भवति।। थूणो थेणो। अर्थः- स्तेन' शब्द में रहे हुए 'ए' का विकल्प से 'ऊ' होता है। जैसे-स्तेनः-थूणो और थेणो।।
स्तेनः संस्कृत पुल्लिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप थूणो और थेणो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-४५ से 'स्त' का 'थ'; १-१४७ से 'ए' का विकल्प से 'ऊ'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से थूणो और थेणो रुप सिद्ध हो जाते हैं।।१-१४७।।
ऐत एत् ।। १-१४८ ।। ऐकारस्यादौ वर्तमानस्य एत्त्वं भवति।। सेला। तेलोक्को एरावणो। केलासो। वेज्जो। केढवो। वेहव्व।।
अथः-यदि संस्कृत शब्द में आदि में 'ऐ' हो तो प्राकृत रूपान्तर में उस 'ऐ' का 'ए' हो जाता है। जैसे-शैलाः सेला। त्रैलोक्यम्=तेलोक्क। ऐरावणः एरावणो। कैलासः केलासो। वैद्यः वेज्जो। कैटभः केढवो। वैधव्यम् वेहव्व।। इत्यादि।।
शैलाः का प्राकृत रूप सेला होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-१४८ से 'ऐ' का 'ए'; ३-४ प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में प्राप्त 'जस्' प्रत्यय का लोप, और ३-१२ से 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति के कारण से अन्त्य हस्व स्वर 'अ' का 'आ' होकर सेला रूप सिद्ध हो जाता है।
त्रैलोक्यम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तेलोक्क होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-१४८ से 'ऐ' का 'ए'; २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से शेष 'क' का द्वित्व 'क'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर तेलोक्कं रूप सिद्ध हो जाता है।
ऐरावणः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप एरावणो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१४८ से 'ऐ' का 'ए'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर एरावणो रुप सिद्ध हो जाता है।
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