Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 71 १-७० से 'आदि आ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'वसिओ' रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'पाण्डवः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पंडवो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-७० से आदि 'आ' का 'अ'; १-२५ से 'ण' का अनुस्वार; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'पंडवो' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'सासिद्धिकः' संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'संसिद्धिओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-७० से आदि 'आ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'संसिद्धिओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'सांयात्रिकः' संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'संजत्तिओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-७० से आदि 'आ' का 'अ'; १-२४५ से 'य' का 'ज'; १-८४ से द्वितीय 'आ' का 'अ'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से शेष 'त' का द्वित्व 'त्त'; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'संजत्तिओ' रूप सिद्ध हो जाता है। मांसं और पासू शब्दों की सिद्धि भी १-२९ में की गई है।।१- ७०।।
श्यामाके मः ॥ १-७१ ।। श्यामाके मस्य आतः अद् भवति।। सामओ।। अर्थः-श्यामाक में 'मा' के 'आ' का 'अ' होता है। जैसे-श्यामाकः-सामओ।। 'श्यामाकः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सामओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श्' का 'स'; २-७८ से 'य' का लोप; १-७१ से 'मा' के 'आ' का 'अ'; १-१७७ से 'क' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'सामआ' रूप सिद्ध हो जाता है।।१-७१।।
इ: सदादो वा ॥ १-७२ ॥ सदादिषु शब्देषु आत इत्वं वा भवति।। सइ सया। निसिअरो निसा-अरो। कुप्पिसो कुप्पासो॥ अर्थः-सदा आदि शब्दों में 'आ' की 'इ' विकल्प से होती है। जैसे-सदा-सइ और सया। निशाचरः= निसिअरो और निसाअरो।। कूर्पासः कुप्पिसो और कुप्पासो।।।
'सदा' संस्कृत अव्यय है। इसके प्राकृत रूप 'सइ' और 'सया' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'द' का लोप; और १-७२ से शेष 'आ' की 'इ' विकल्प से होकर 'सई' रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में १-१७७ से 'द' का लोप; और १-१८० से शेष 'अ' अर्थात् 'आ' का 'या' होकर 'सया' रूप सिद्ध हो जाता है। निसिअरा और निसाअरो शब्दों की सिद्धि १-८ में की गई है।
'कूर्पासः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'कुप्पिसा' और 'कुप्पासो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-८४ से 'कू' के 'ऊ' का 'उ'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'प' का द्वित्व 'प्प'; १-७२ से 'आ' की विकल्प से 'इ'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'कुप्पिसो' 'कप्पासो' रूप सिद्ध हो जाता है।॥१-७२॥
आचार्ये चोच्च ।। १-७३ ।। आचार्य शब्दे चस्य आत इत्वम् अत्वं च भवति। आइरिओ, आयरिओ।। अर्थः-आचार्य शब्द में 'चा' के 'आ' की 'इ' और 'अ' होता है। जैसे-आचार्यः-आइरिओ और आयरिओ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org