Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 69
'ब्राह्मणः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'बम्हणो' और 'बाम्हणो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-७४ से 'ह्म' का 'म्ह'; १-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'बम्हणा' और 'बाम्हणो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
'पूर्वाह्णः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पुव्वण्हो' और 'पुव्वाण्हा' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'व' का द्वित्व 'व्व'; १-८४ से दीर्घ 'ऊ' का हस्व 'उ'; १-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ':२-७५ से 'हण' का 'ण्ह': और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'पुव्वण्हो' और 'पुव्वाण्हो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
'दवाग्निः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'दावग्गी होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'न्' का लोप; २-८९ से 'ग' का द्वित्व 'ग्ग'; १-८४ से 'वा' के 'आ' का 'अ'; ३-१९ से पुल्लिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' का दीर्घ स्वर 'ई' होकर 'दवग्गी' रूप सिद्ध हो जाता है।
'दावाग्निः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप "दावग्गी' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'न्' का लोप; २-८९ से 'ग' का द्वित्व 'ग्ग'; १-८४ से 'वा' के 'आ' का 'अ'; ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' का दीर्घ स्वर 'ई' होकर 'दावग्गी' रूप सिद्ध हो जाता है।
'चदुः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'चडू' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड'; और ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' का दीर्घ स्वर 'ऊ' होकर 'चडू' रूप सिद्ध हो जाता है।
'चाटुः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'चाडू' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड'; और ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' का दीर्घ स्वर 'ऊ' होकर 'चाड' रूप सिद्ध हो जाता है।।१-६७।।
घबू वृद्धे ा ॥१-६८॥ घ निमित्तो यो वृद्धि रूप आकारस्तस्यादिभूतस्य अद् वा भवति।। पवहो पवाहो। पहरो पहारो। पयरो पयारो। प्रकारः प्रचारो वा। पत्थवो पत्थावो।। क्वचिन भवति। रागः राओ।
अर्थः-घम् प्रत्यय के कारण से वृद्धि प्राप्त आदि 'आ' का विकल्प से 'अ' होता है। जैसे-प्रवाह: पवहो और पवाहो।। प्रहार:=पहरो और पहारो।। प्रकारः अथवा प्रचारः पयरो और पयारो।। प्रस्तावः पत्थवो और पत्थावो।। कहीं-कहीं पर 'आ' का 'अ' नहीं भी होता है। जैसे-रागः-राओ। - 'प्रवाहः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पवहो' और पवाहो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-६८ से 'आ' का विकल्प से 'अ'; और ३-२ से प्रथमा एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से 'पवहो' और 'पवाहो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
'प्रहारः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पहरो' और 'पहारो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-६८ से 'आ' का विकल्प से 'अ'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर क्रम से 'पहरो' और 'पहारो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
'प्रकारः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पयरो' और 'पयारो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' का 'य'; १-६८ से 'आ' का विकल्प से 'अ'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से पयरो और पयारो रूप सिद्ध हो जाते हैं। प्रचारः के प्राकृत रूप 'पयरो' और 'पयारो' की सिद्धि ऊपर लिखित 'प्रकार' शब्द की सिद्धि के समान ही जानना।
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