Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 89 अर्थ :-तीर्थ शब्द में थ' का 'ह' करने पर तीर्थ में रही हुई 'ई' का 'ऊ' होता है। जैसे-तीर्थम्=तूह। 'ह' ऐसा कथन क्यों किया गया है ? उत्तर-जहाँ पर तीर्थ में रहे हुए ‘र्थ' का 'ह' नहीं किया जायगा; वहाँ पर 'ई' का 'ऊ' नहीं होगा। जैसे-तीर्थम्-तित्थं।
तीर्थम संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप तूहं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०४ से 'ई' का 'ऊ'; २-७२ से 'र्थ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तूहं रूप सिद्ध हो जाता है। "तित्थं' शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८४ में की गई है।।१-१०४।।
एत्पीयषापीड-बिभीतक-कीद्दरोद्दशे ॥१-१०५।। एषु ईत एत्वं भवति।। पेऊसं। आमेलो। बहेडओ। केरिसो। एरिसो।।
अर्थ :-पीयूश, अपीड, बिभीतक, कीद्दश, और ईद्दश शब्दों में रही हुई 'ई' की 'ए' होती है। जैसे पीयूशम्-पेऊस; आपीड: आमेलो; बिभीतक: बहेडओ; कीद्दशः केरिसो; ईद्दशः एरिसो।।
पीयूशम्-संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पेऊसं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०५ से 'ई' की 'ए'; १-१७७ से 'य्' का लोप; १-२६० से 'ष' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पेऊसं रूप सिद्ध हो जाता है।
आपीडः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप आमेलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३४ से 'प' का 'म्'; १-१०५ से 'ई' की 'ए'; १-२०२ से 'ड' का 'ल'; और ४-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आमेला रूप सिद्ध हो जाता है।
बहेडओ की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८८ में की गई है।
कीदशः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप केरिसा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०५ से 'ई' की 'ए'; १–१४२ से 'द' की 'रि'; १-२६० से 'श' का 'स'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर केरिसो रूप सिद्ध हो जाता है।
ईद्दशः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप एरिसा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०५ से 'ई' की 'ए'; १-१४२ से 'द' की रि; १-२६० से 'श' का 'स'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर एरिसो रूप सिद्ध हो जाता है।।१-१०५।।
नीड-पीठे वा ।। १-१०६।। अनयोरीत एत्वं वा भवति ।। नेडं नीडं। पेढं पीढं।
अर्थः- नीड और पीठ इन दोनों शब्दों में रही हुई 'ई' का 'ए' विकल्प से होता है। जैसे- नीडम्=नेडं और नीडं। पीठम्=पेढं और पीढं।
नीडम संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप नेडं और नीड होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१०६ से 'ई' की विकल्प से 'ए'; और ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से नेडं और नीडं रूप सिद्ध हो जाते हैं। ___ पीठम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप पेढं और पीढं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१०६ से 'ई' की विकल्प से 'ए'; १-१९९ से 'ठ' का 'ढ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से पेढं और पीढं रूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-१०६।।
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