Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 85 का लोप; १-१८७ से 'ध' का 'ह'; १-१८० से 'त्' के शेष 'अ' का 'य' ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दिहा-गयं रूप सिद्ध हो जाता है।
'दुहा' की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। "वि' की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६ में की गई है। सः संस्कृत सर्वनाम है। इसका प्राकृत रूप सो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-८६ से 'सो' रूप सिद्ध हो जाता है।
सुर-वधू-सार्थः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप सूर-वहू-सत्थो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' का 'ह'; १-८४ से 'सा' के 'आ' का 'अ'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'थ' का द्वित्व 'थ्थ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'थ्' का 'त्'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सूर-वहू-सत्थो रूप सिद्ध हो जाता है।।१-९७||
वा निर्झरे ना ।। १-९८ ।। निर्झर शब्दे नकारेण सह इत ओकारो वा भवति ॥ ओज्झरो निज्झरो ।।
अर्थ :-निर्झर शब्द में रही हुई 'नि' याने 'न्' और 'इ' दोनों के स्थान पर 'ओ' का विकल्प से आदेश हुआ करता है। जैसे-निर्झरः ओज्झरो और निज्झरो। विकल्प से दोनों रूप जानना।
निर्झरः संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप ओज्झरो और निज्झरा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-९८ से 'नि' का विकल्प से 'ओ'; २-७९ से 'र' का लोप २-८९ से 'झ' का द्वित्व 'झ्झ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ्' का 'ज्'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से ओज्झरो और निज्झरो रूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-९८।।
हरीतक्यामीतोत् ।।१-९९।। हरीतकीशब्दे आदेरीकारस्य अद् भवति ।। हरडई।। अर्थ :-'हरीतकी' शब्द में आदि 'ई' का 'अ' होता है। जैसे-हरीतकी-हरडई।।
हरीतकी संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप हरडई होता है। इसमें सूत्र सख्या १-९९ से आदि 'ई' का 'अ'; १-२०६ से 'त' का 'ड'; १-१७७ से 'क्' का लोप; होकर हरडई रूप सिद्ध होता है।।१-९९।।
आत्कश्मीरे।। १-१००।। कश्मीरे शब्दे ईत आद् भवति।। कम्हारा।। अर्थ :-कश्मीर शब्द में रही हुई 'ई' का 'आ' होता है। जैसे-कश्मीराः कम्हारा।।
कश्मीराः संस्कृत शब्द है। इसका प्रांत रूप कम्हारा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७४ से 'श्म' का 'म्ह'; १-१०० से 'ई' का 'आ'; ३-४ से प्रथमा के बहुवचन में पुल्लिंग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति एवं लोप; ३-१२ से अन्त्य हस्व स्वर 'अ' का दीर्घ स्वर 'आ' होकर कम्हारा रूप सिद्ध हो जाता है।।१-१००।।
पानीयादिष्वित्। १-१०१ ॥ पानीयादिषु शब्देषु ईत इद् भवति।। पाणि अलिआ जिअइ। जिअउ। विलिओ करिसो। सिरिसो। दुइ तइआ गहिरं। उवणि आणिअंपलिविआ ओसिअन्त। पसि। गहिआ वम्मिओ। तयाणिं।। पानीय। अलीक।। जीवति। जीवतु। वीडित। करीष। शिरीश। द्वितीय। तृतीय। गभीर। उपनीत। आनीत। प्रदीपीत। अवसी-दत्। प्रसीद। गृहीत। वल्मीक। तदानीम् इति पानियादयः।। बहुलाधिकारादेषु क्वचिन्नित्यं क्वचिद् विकल्पः। तेन। पाणी। अली जीअइ। करीसो। उवणीओ। इत्यादी। सिद्धम्।।
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