Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विवेचन - "इदि परमैश्वर्ये इति, इन्द्रते इति इन्द्रः ।" संस्कृत में 'इदि परमैश्वर्य्ये" धातु है जिसका अर्थ है, जो परम ऐश्वर्य को भोगे । इस धातु से इन्द्र शब्द बना है जो परम - उत्कृष्ट ऐश्वर्य सुख सम्पत्ति को भोगता है उसको इन्द्र कहते हैं। यह द्रव्य इन्द्र कहलाता है। ज्ञान रूप परम ऐश्वर्य को आत्मा भोगता है इसलिए आत्मा को भाव इन्द्र कहते हैं। जो इन्द्र का लिंग-साधन हो, वह इन्द्रिय है । इसका फलितार्थ यह हुआ कि इन्द्र आत्मा का जो मुख्य साधन हो वह इन्द्रिय है । इन्द्रिय रूप परिणाम इन्द्रिय परिणाम कहलाता है।
प्रज्ञापना सूत्र
कसाय परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते । तंजहा- कोह कसाय परिणामे, माण कसाय परिणामे, माया कसाय परिणामे, लोभ कसाय परिणामे ३ ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! कषाय परिणाम चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. क्रोध कषाय परिणाम २. मान कषाय परिणाम ३. माया कषाय परिणाम और ४. लोभ कषाय परिणाम ।
विवेचन - जिसमें प्राणी परस्पर एक दूसरे का कर्षण - हिंसा (घात) करते हैं उसे 'कष' कहते हैं या जो कष अर्थात् संसार को प्राप्त कराते हैं, वे कषाय हैं। जीव की कषाय रूप गति को कषाय परिणाम कहते हैं।
लेस्सा परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोमा ! छवि पण्णत्ते । तंजहा - कंण्ह लेसा परिणामे, णील लेसा परिणामे, काउ लेसा परिणामे, तेउ लेसा परिणामे, पम्ह लेसा परिणामे, परिणामे ४ ।
सुक्क
सा
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! लेश्या परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! लेश्या परिणाम छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. कृष्ण लेश्या परिणाम २. नील लेश्या परिणाम ३. कापोत लेश्या परिणाम ४. तेजो लेश्या परिणाम ५. पद्म लेश्या परिणाम ६. शुक्ल लेश्या परिणाम ।
विवेचन - लेश्या रूप परिणमन को लेश्या परिणाम कहते हैं।
जोग परिणामे णं भंते! कइविहे गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते । तंजहा जोग परिणामे ५ ।
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पण्णत्ते ?
मण जोग परिणामे, वइ जोग परिणामे, काय
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