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में आ रहे हैं। इसका कारण यही है कि उनके प्रचार में आधुनिकता है। उन्होंने इस धर्म के पुनर्जीवन के लिये ज्ञान और ज्ञानियों की शरण ली है। उसके लिये बौद्ध भिक्षुओं ने मिशन स्पिरिट ग्रहण की है। हमारे वर्तमान आचार्य भी यदि इस बात की ओर ध्यान दें तो बहुत कुछ कल्याण हो सकता है। जैनधर्म के सिद्धान्त सर्व-जनहितकारी और नैतिक बौद्धिक दृष्टि से बड़े सबल हैं। अहिंसा से तो माज इस देश को लड़ाई लड़ी जा रही है।
बौद्ध साहित्य के प्रकाशन और प्रचार के लिये उस धर्म के अनुयायी तन, मन, धन से चेष्टा कर रहे हैं। आज अंग्रेज़ी, जर्मन, जापानी, चीनी, हिन्दी, बंगाली, मराठी और गुजराती आदि सभी भाषाओं में बौद्ध ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । धम्मपद, त्रिपिटिक, मच्मिमनिकाय, सुत्तनिकाय, दीघनिकाय, जातक कथा, मादि सभी प्रमुख प्रन्थ आज अंग्रेज़ी, जर्मन
और राष्ट्रभाषा हिन्दी में विद्यमान हैं। यह युग ही धर्म-मन्थन का है। प्रत्येक धर्म में कान्त-जीवन का उदय हो रहा है–यदि नहीं हुआ है तो होना चाहिये।
जैन-साहित्य का, जैसा मैं पहले कह चुका हूँ, बड़ा विशाल भविष्य है, यदि हममें उस तरफ कार्य करने की लगन हो। आज कितने शर्म की बात है कि धर्म-प्रवर्तक श्री महावीर का कोई प्रामाणिक, बौद्धिक कसौटी पर खरा उतरनेवाला निरपेक्ष भाव से लिखा हुआ जीवन-चरित्र नहीं है। श्रद्धय पण्डित सुखलालजी जैसे महान प्रतिभा सम्पन्न और गहन अध्ययनवाले विद्वान् को शीव इस विषय को लेना चाहिये। यदि उन्होंने यह कार्य किया तो अवश्य जैन साहित्य का, भारतीय-समाज और मानव जाति का महान् उपकार होगा। मैं धार्मिक विच्छेद या मातंक की बात नहीं कहता। में धार्मिक स्वतन्त्रता का कायल हूँ, किन्तु मेरा मतलब यह है कि प्रत्येक धर्म एक सुदीर्घ अनन्त सत्य की ज्योति से प्रोद्भासित हुआ था; वह ज्योति सत्र में किसी न किसी आवरण में प्रचलित है।
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