Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 11
________________ कहीं मुलझा न जाए...2 जाने से मरना पड़ता है। अतः कहने के सिवाय मन शांत नहीं होगा। लज्जा तो छोड़नी ही ण्डेगी, अन्यथा पापों से ज्यादा भारी बनूँगा। लज्जा रखू भी क्यों? रे जीव! पाप करने में तुझे लज्जा नहीं आई, तो अब आलोचना लेने में लज्जा क्यों रखनी? ८-९ वर्ष की उम्र में एक कव्यक्ति से सम्पर्क हो गया। वह पडो मुफ्त में सिनेमा में ले गया। गुणत सिनेमा के इन दृश्यों से मेरे में स्त्रियों की ओर निर्लज्जतापूर्वक देखने की आदत पड़ने लगी। फिर तो रास्ते में चलते-चलते भी स्त्रियों को देखने की आदत पड़ गयी और उसमें पकड़े जाने का भय भी बढ़ने लगा। इस प्रकार मन के पापों का गुणाकार होने लगा। जरा सी नज़र स्त्री पर पड़ जाए, तो उस पिक्चर में उस एक्टरने ऐसा किया था, वैसा किया था। कर दिया। जमीनकंद मिश्रित समोसे, कचौड़ी, मैं भी ऐसा करूँ, वैसा करूँ ! इस प्रकार के पाप वेफर्स आदि खाने की आदत भी कुसंग से बढ़ने विचार घर करने लगे। बगीचे में घूमने-फिरने लगी। १४-१५ वर्ष की उम्र में सहशिक्षण और जाऊँ, तो भी वहाँ पर युगलों पर दृष्टि पड़े बिना खेलकूद में स्पर्शजन्य पापों को तो मानो अपना नहीं रहती, क्या होगा तंदुलिया मत्स्य जैसी मेरी जाल फैलाने के लिए बड़ा मैदान मिल गया। आत्मा का! होस्टल और तीर्थ की धर्मशालाओं को भी उस कुव्यक्ति ने मेरे भोलेपन का लाभ मैंने पापस्थान बना दिये। क्या कहूँ गुरुदेव! घर उठाकर मुझसे हस्त मैथुन जैसा कुकर्म भी के गुरुजनों को तो इसकी गंध भी न आई। उन्हें करवाया। मुझे भी उसमें कृत्रिम आनंद आया। क्या पता कि जेबखर्च के लिए दिए हुए पैसों का एकांत में यह पाप बारबार करने लगा। बस ! मेरा कितना दुरुपयोग हो रहा है ? १-२ घंटे स्कूल में पतन शुरु हो गया। शरीर क्षीण होने लगा। एटेन्ड कर दूसरे तीन घंटे किस टॉकिज़ में या कृत्रिम शक्ति लाने के लिए भिन्न-भिन्न गार्डन में गया! इसकी कल्पना भी उन्हें किस विज्ञापनों के पीछे अपने समय व पैसे का दुर्व्यय प्रकार हो सकती थी? स्कूल जीवन में ही करने लगा। उसमें भी कुछ उत्तेजक दवाएँ तो। पंचेन्द्रिय जीव का घात प्रारंभ हो गया। विज्ञान गिरते पर प्रहार जैसी बन गई! परंतु किसे की प्रयोगशाला में एक दिन शिक्षक ने मेंढ़क का कहूँ? अब तो आगे बढ़कर मेरे हाथ विजातीय के डिसेक्शन (विछेदीकरण) करके बताया। मुझे तो संयोग से मलिन होने लगे। मैंने कितनों के हाथ चक्कर आने लगे ! यह क्या? जीन्दे जीव को चीर बिगाड़े, कितनों के मुँह । इन पापों के पोषण के कर मार डालना ! कैसा नृशंस कार्य ! मेरे मित्र ने लिए परस्पर जूठी की हुई भेल पूड़ी, पांऊभाजी मुझे झूठी तसल्ली दी। दोस्त ! इतने से क्या खाना, जूठे सोडा लेमन पीना वगैरह भी प्रारम्भ घबराता है? हमें तो आगे चलकर बायोलोजी का

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