Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 81
________________ कहीं सुना न जाए...72 PATOLEDESI AD सीताजी को छोड़कर सारथि चला गया। उस भीषण जंगल में वज़जंघ राजा अपने मंत्री सुबुद्धि आदि के साथ हाथियों की शोध के लिये आये हुए थे। दूर से अकेली, अबला स्त्री को देखकर सहायता के लिये राजा अपने सिपाहियों के साथ वहाँ आ पहुँचे। सीताजी उन्हें लूटेरा समझकर गहने उनकी तरफ फेंकने लगी। तब वजजंघ राजा ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि, "आप चिंता मत कीजिये। हम आपकी सहायता के लिये आये हैं। आपके भाई के समान हैं।" तब सीताजी ने सब हकीकत कही, उसके बाद वजजंघ राजा वहाँ से सीताजी को सम्मान पूर्वक सुरक्षा के लिए पुंडरीक नगरी में ले गया। वहाँ पर उसने लव-कुश दो पुत्रों को जन्म दिया। जब वे बड़े हुए, तब उन्होंने राम-लक्ष्मण के साथ युद्ध किया। युद्ध में राम-लक्ष्मण आकुल-व्याकुल हो गये। इतने में नारदजी वहाँ आये | उन्होंने पिता-पुत्र का परिचय करवाया और युद्ध को रोक दिया गया। उनका सुखदायी मिलन हआ। लव और कुश को मान-सन्मान के साथ अयोध्या में प्रवेश करवाया। बाद में रामचंद्रजी की आज्ञा को मान देकर सीताजी ने अग्नि-दिव्य किया। रामचन्द्रजी ने सम्मानपूर्वक अयोध्या में प्रवेश करने के लिए सीताजी से कहा। सीताजी ने उसी पल आत्म-कल्याण करने हेतु स्वयं लोच कर संयम स्वीकार किया; इत्यादि बातें हम जानते हैं। पूर्वभव में उपहास में मुनि पर कलंक का आरोपण दिया था, उसका प्रायश्चित न लेने से एक महासती के ऊपर कलंक आया और उसके कारण कितने कष्ट सहने पड़े। अतः हमें जरूर आलोचना लेनी चाहिए। सीताजी रथ में से मुर्छित होकर गिर पड़ी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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