Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 84
________________ 75...कहीं भुना ज जाए 16 आलोचना न लेने से दुःखी बने श्रीपाल राजा श्रीपालजी पूर्वभव में श्रीकान्त नाम के राजा थे। एक दिन नगर से मलिन वस्त्र वाले मुनिश्री को देखकर तिरस्कार भरे शब्दों में फटकारते हुए उन्होंने मुनि से कहा कि तुम कोढ़ी हो। दूसरी बार श्रीकान्त राजा ने नदी के किनारे कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े हए मुनि के प्रति तिरस्कार करते हए उनको पानी में डुबकी लगवाई। मुनि ने तो उपसर्ग जानकर समभाव से सहन कर किया, परंतु श्रीकांत को कर्म का बंध हो गया। श्रीकांत राजा ने इन दोनों पापों की आलोचना न ली, इसलिये दूसरे भव में श्रीपालजी को कोढ़ रोग हुआ। उस कर्म को भुगतने के बाद पानी में डुबाने का कर्म उदय होने पर धवल सेठ ने उन्हें समुद्र में गिराया, परन्तु वहाँ पर नवपद के ध्यान के प्रताप से मगरमच्छ की पीठ पर गिरने के कारण बच गये। प्रायश्चित न लेने के फल बहुत दुःखदायी होते हैं। अतः छोटे-से पाप की आलोचना भावपूर्वक लेनी चाहिए। Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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