Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 93
________________ कहीं मुनसा न जाए...84 23 भगवान महावीर स्वामी के जीव ने, प्रायश्चित न लिया तो... त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में एक रानी का तिरस्कार किया और शय्यापालक नौकर के कान में गरमागरम जस्ता डलवाया। उसकी आलोचना नहीं ली... जिससे रानी के जीव ने तीर्थंकर के भव में कटपुतना के रुप में भयंकर शीत उपसर्ग किया और शय्यापालक के जीव ने किसान बन कर प्रभु के कान में खीले ठोके। 24 हरिकेशीबल उत्पन्न हुए चंडालकुल में... त्रिपृष्ठ वासुदेव शय्यापालक के कान में गर्मागर्म जस्ता डलवाता हैं। सोमदेव पुरोहित ने दीक्षा लेने के बाद कुल का अभिमान किया था, परंतु उसने कुल के अहंकार की आलोचना न ली, जिससे नीच गोत्र कर्म का बन्ध हुआ। उस कर्म के उदय से चंडालकुल में जन्म लेना पड़ा। लेकिन पूर्व भव में सोमदेव के जीव ने दीक्षा लेने के बाद विशेष आराधना करके बहुत सारे कर्मों की निर्जरा की थी, इसलिये थोड़े कर्म शेष रहने के कारण हरिकेशीबल के भव में चरम शरीरी के रूप में जन्म प्राप्त किया था। पूर्वभव में आराधना के संस्कारो के कारण हरिकेशीबल के भव में दीक्षा लेकर शुक्लध्यान पर चड़कर केवलज्ञानी बन कर मोक्ष में गये, परंतु आलोचना न ली, इसलिये एक बार तो कर्म राजा ने उन्हें चंडाल के भव में फेंक दिया। Jain Education International wow.jainelibrary.org

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