Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 109
________________ विशल्यों का नाश होने से सरलभाव उत्पन्न होता है। जिससे स्त्रीवेद और नंपुसकवेद का बंध नहीं होता और अगर पूर्व में बाँधे हुए हो, तो उनका नाश हो जाता है। इतना ही नहीं, सभी कर्मों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिये कहा है कि, उद्धरिय सव्वसल्ला, तित्थगराणाओ सुत्थिया जीवा, भवसयकम्माई खविओ पावाई या सिवं ठाणं हि अर्थात् जिनेश्वर भगवान की आज्ञा में सुंदर रीति से रहे हुए जीव सभी शल्यों की आलोचना करके सेंकडो भवों के पापकर्मों का क्षय कर शिवस्थान यानी कि मोक्षधाम में पहुँचते हैं। कवि कलापी ने भी कहा है कि, "हा पस्तावो विपुल झरणुं स्वर्गथी उतरे छे, पापी तेमां डूबकी लईने पुण्यशाली बने छे ।।" आलोचना कैसे लिखनी चाहिये ? जीवन में कौन से पाप हो सकते हैं? उन्हें समझाने के लिए और आलोचना लेने के लिए कुछ पाप स्थान - ज्ञानाचार आदि के अपराधों का ब्योरा भव-आलोचना मार्गदर्शिका नाम की पुस्तक में दिया गया है। वह पुस्तक इस पुस्तक के साथ निःशुल्क दी जाती है। उसमें से जिस पापस्थान का सेवन किया हो, उस पाप स्थान का क्रमांक एक नोट बुक या कागज पर लिख लीजिये। ज्ञात, अज्ञात या बलात्कार आदि रीति से पाप हुआ हो, उसी प्रकार धर्मस्थान या अन्यत्र होटल आदि में हुआ हो, जैसे भाव से यानी दर्द से या आनन्दपूर्वक हुआ हो, उसी प्रकार एक-एक क्रमांक के आगे कागज में विवरण लिख लीजिये। लिखने के बाद पुनः पढ़ लीजिये। बाद में क्रमांक के स्थान पर संपूर्ण विगत व्यवस्थित रीति से लिख लीजिये। फिर उस पुस्तक के अंत में रहे हुए एक पेज निकालकर पू. गुरुदेवश्री को दे दीजिये। फिर जो प्रायश्चित गुरुदेवश्री दे। उसे पूर्ण करने का प्रयत्न कीजिए । For Personal & Private Use Only कहीं मुरसान जाए... 100 उस पुस्तक में जितने पापस्थानक लिखे हुए हैं, उनसे अन्य पापस्थान का जीवन में सेवन किया हो, तो उन्हें गीतार्थ गुरु भगवंत के पास समझने का यत्न करना चाहिये। इस पुस्तक में लिखे गये पापस्थानकों के सिवाय पाप स्थानक नहीं होते, ऐसा न मानें, इस पुस्तक के पाप स्थानक तो केवल दिग्दर्शन मात्र हैं, ऐसा समझना चाहिए। उस पुस्तक से अतिरिक्त पापों की भी आलोचना लेनी चाहिये । अपने जीवने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य की प्रवृत्तियों में जो अपराध किये हो, उन्हें याद कराने के लिये अब ज्ञानाचारादि के अपराधों (अतिचारों) की सूची उस पुस्तक में दी गई है। उसे आप पढ़ेंगे, तो मालूम होगा कि मैंने कौन-कौन से अपराध किये हैं । अपराधों का ब्यौरा लिखकर गुरूदेव के पास प्रायश्चित लेंगे, तभी अपनी आत्मा शुद्ध होगी। भूल से भगवान की आज्ञा के विरुद्ध लिखने में आया हो, तो मिच्छामि दुक्कडं । www.janelibrary.org

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