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कहीं मुनसा न जाए...88
27 देवानंदा के गर्भ का
अपहरण क्यों हुआ?
ज्ञान की विराधना की आलोचना नहीं ली।
पूर्वभव में देवानंदा का जीव जेठानी और त्रिशला का जीव देरानी था। देरानी की रत्नपेटी में से बहुत रत्न जेठानी ने चुरा लिये। झगड़ा होने पर जैसे-तैसे कुछ रत्न वापस दिये। देरानी ने गुस्से में आकर ऐसा कहा कि, "तुम्हारी संतान मुझे मिले।" जेठानी ने आलोचना नहीं ली। इस कारण से भवांतर में देवानंदा के गर्भ में रहे हुए भगवान महावीर स्वामी का संक्रमण त्रिशला की कुक्षि में हुआ। इस प्रकार कथा प्रचलित हैं। इसलिये चोरी की आलोचना लेने में लापरवाही नहीं करनी चाहिये।
आचार्य श्री वसुदेवसूरीश्वरजी म.सा. ने पूर्वभव में गुस्से में आकर ५०० शिष्यों को वाचना देना बंद किया। १२ दिन मौन रह कर आलोचना लिये बिना ही उनकी मृत्यु हो गयी। दूसरे भव में वरदत्त के रूप में उत्पन्न हुए। शरीर में कुष्ट रोग फैल गया। पढ़ने पर एक अक्षर भी उन्हें नहीं चढ़ता। था। फिर विजयसेनसूरीश्वरजी महाराज के पास हकीकत का पता चलने से ज्ञानपंचमी की आराधना की और तीसरे भव में मोक्ष में गये। ज्ञानविराधना की आलोचना न लेने से। कुष्ट रोग हुआ और ज्ञान नहीं चढ़ता था।
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