Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 101
________________ अलग हो गया। कामलक्ष्मी ने अन्दर दीपक के प्रकाश में जाकर देखा, तो वेदसार ब्राह्मण को सर्प ने डस लिया था। उसका शरीर नीला हो गया था। उसके प्राण पंखेरू उड़ गये थे। रानी ने विचार किया कि 'अब क्या करूँ, यदि राजभवन मे लौटूंगी, तो राजहत्या का आरोप शायद मुझ पर आ जायेगा।" अतः रानी घोड़े पर बैठकर जंगल में भाग गई। भागते-भागते एक नगर में माली कि घर घोड़े को खड़ा कर स्वयं एक मन्दिर में गई। वहाँ बाजे ज रहे थे। अलंकार और श्रृंगार से सज्जित एक नारी को देखकर एक स्त्री ने उससे पूछा- तुम कौन कामलक्ष्मी बेश्या के वहाँ उसका पुत्र वेदविक्षण आया। हो ? कहाँ से आयी हो? किस की अतिथि हो ? उसने असत्य का जाल बिछा कर कहा कि मैं अपने पति के साथ ससुराल जा रही थी। बीच में चोर मिले और उन्होंने मेरे पति को मार डाला। मैं किसी प्रकार से बच कर यहाँ आई हूँ । यहाँ मेरा Jain Education कहीं मुरझा न जाए... 92 कोई नहीं हैं ! मैं निराधार हूँ। ये बातें सुनकर उस स्त्री ने मायावी वचनों से कामलक्ष्मी को आकर्षित किया और अपने घर ले गई। वह स्त्री एक वेश्या थी। उसने कामलक्ष्मी को भी गीत नृत्य आदि कलायें सिखाकर वेश्या बना दी। एक दिन वेदविचक्षण ने विचार किया कि मेरी माता की तलाश में पिताजी गये थे। माताजी तो आई नहीं, परन्तु पिताजी भी नहीं आये। क्या कहीं वे भी खो गये ? क्या हुआ ? मैं उनकी तलाश करने जाऊँ । यह विचार करके युवक वेदविचक्षण घर से निकला । घूमते-घूमते वह उसी वेश्या के यहाँ आया और वहाँ फँस गया। कुछ समय बीतने के पश्चात् धन समाप्त हो जाने पर वह वेश्या का घर छोड़कर जाने लगा, तब उसने वेश्या को स्वयं का परिचय दिया। उसे सुनकर कामलक्ष्मी को मन में खूब दर्द हुआ। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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