Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 105
________________ उसके बाद देव ने देवलोक के सुख का स्वप्न दिखाया। पुष्पचूला ने दूसरे दर्शनकारों को बुलाकर उन्हें देवलोक का स्वरूप पूछा। वह सत्य जान न पायी । पुनः अर्णिकापुत्र आचार्य को बुलाकर पूछा, तो उन्होंने देवलोक का स्वरूप वैसा ही बताया, जैसा कि पुष्पचूला ने स्वप्न में देखा था। इससे वैराग्य पाकर चारित्र लेकर आलोचना- प्रायश्चित आदि से निरतिचार चारित्र का पालन कर वैयावच्च से उसी भव में केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गई। यहाँ विशेष विचारने जैसा हैं कि कारणवश भाई-बहन पति-पत्नी बन गये, परन्तु आलोचना प्रायश्चित करके चारित्र ग्रहण कर पुष्पचूला मोक्ष तक पहुँच गई। अतः हमे भी स्वयं को शुद्ध बनाने के लिए प्रायश्चित लेना चाहिए। हमने ऐसे घोर पाप तो किये ही नहीं हैं, अतः डरने का कोई कारण नहीं है। कदाचित् भयंकर पाप कर भी दिये हो, तो भी डरने की क्या आवश्यकता ? प्रायश्चित लेने से उनकी आत्मा शुद्ध हो गई, तो क्या हमारी आत्मा शुद्ध नहीं होगी ? अरे जीव ! पाप करते हुए नहीं डरा, तो पापों की शुद्धि करने से क्यों डरता है ? www.jainelibrary.org पुष्पचूला को देव ने स्वप्न में देवलोक का दृश्य दिखाया। कहीं मुरझा न जाए.... 96 Coooooooooooot

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