________________
कहीं मुनजान जाए...80
सकुमालिका नाम की साध्वीजी जंगल में वैशाख महिने के दिनों में आतापना लेती थी, यानी कड़ी धूप सहन करती थी। इतने में वहाँ पाँच व्यक्ति एक वेश्या को लेकर आये और वे उसके भिन्न-भिन्न अंगों का स्पर्श करते करते उसके साथ क्रीड़ा करने लगे। ... अरे ! कामान्ध लोग लाज-शरम को भी छोड़ देते हैं... इस दृश्य पर साध्वीजी की नज़र गिरी और वह भान भल गयी। और उस समय सुकुमालिका ने नियाणा किया यानी इस धर्म के बदले में अगले भव में पांच पति की प्राप्ति का दृढ़ संकल्प किया। उसकी आलोचना नहीं ली।
सुकुमालिका मर कर जब द्रुपद राजा की पुत्री द्रौपदी बनी, तब उसने राधावेध को साधने वाले अर्जुन के गले में वरमाला डाली, परन्तु दिव्य प्रभाव से पाँचों पांडवों के गले में वह माला दिखाई दी। द्रुपदराजा चकित हो गये। अरेरे ! यह क्या? इतने में आकाशवाणी हई कि जो हआ है, वह बराबर है, फिर वहाँ चारण मुनि आये
और समस्या का हल निकाला कि जिस दिन जिसकी बारी होगी, उसके अलावा दूसरे को मन से भी वह नहीं इच्छेगी, जो अत्यंत कठिन कहलाता है।
___ सुकुमालिका ने आलोचना नहीं ली, इसलिये यह आश्चर्यकारी घटना बनी अर्थात् वह पाँचों पांडवों की पत्नी बनी, नहीं तो विचारों की आलोचना के प्रायश्चित में कोई मासक्षमण नहीं करने पड़ते, परंतु जीव अहंभाव से आलोचना लेने का टाल देते हैं। जिससे भवांतर में उसके जीवन में भयंकर अनहोनियाँ बनती है। दुःख की रामायण और महाभारत में जीवन धूलधानी हो जाता है। करुण चीखें और वेदना से भरे हुए आँसुओं के अलावा कुछ नहीं रहता। इसलिये ज्ञानी भगवंत कहते हैं कि, अरे ! भाई चेतिये.... बाजी अभी भी अपने हाथ में है। प्रायश्चित से जीवन की काली किताब को धो दीजिये।
मालिका, अम निषेध होते हुए भी गांव के बाहर
।
HainEditation international
Far Farmional SPint davonly
www.inriclipranyod