Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 79
________________ वेगवती ने नम्रता से जवाब दिया, पिताश्री ! और तो मैने कुछ नहीं किया, परंतु कौतुक वृत्ति से मज़ाक में लोगों को कहा कि "सुदर्शन मुनि को मैंने स्त्री के साथ देखा है।" यह सुनते ही श्रीभूति क्रोधायमान हुए कि, "अररर... यह तूने क्या किया ? जा, अभी जा और उस महान मुनि से माफी माँगकर आ...।" पिताजी के रोष से वेगवती भयभीत हो गई और प्रकट रूप से वह थर-थर काँपने लगी। उसने सभी लोगों के सामने मनि से क्षमा-याचना की और कहा कि मैंने उपहास में असत् दोषारोपण करके आपके ऊपर कलंक लगाया है। आप निर्दोष हैं। यह सुनकर लोग वापस मुनिश्री का सत्कार करने लगे। प्रकट रूप से माफी माँगने के पश्चात उसने आलोचना न ली|molorary org क्यान मुखवाली बेगवती ने सभी लोगों की उप स्थति में सुदर्शन मुनि से माफी मांगी। Jain Education interational

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