Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 78
________________ 69... कहीं मुना न जाए 14 निर्दोष सीताजी पर कलंक क्यों आया ? महान् पवित्र आत्मा सती सीताजी पर जन-सामान्य ने असदारोप (झूठा) लगाया। जिससे सीताजी को अनेक कष्ट भुगतने पड़े। क्योंकि जैनदर्शन CAUSE AND EFFECT थियरी को मानता है। कारण के बिना कार्य उत्पन्न होता ही नही। इसका संबंध पूर्व भव से है। क्योंकि उनकी आत्मा पूर्व भव में आलोचना (प्रायश्चित्त) न ले सकी। इसलिये महासती के ऊपर भी काला कलंक लगा । श्रीभूति पुरोहित की पत्नी सरस्वती ने पुत्री को जन्म दिया। उसका नाम वेगवती रखा गया। क्रमशः वह यौवनावस्था को प्राप्त हुई, फिर भी उसकी धर्मकार्यों में अच्छी लगनी थी। एक दिन उसने कायोत्सर्ग Jain Education Intera में खड़े सुदर्शन मुनिश्री को देखा, मुनि भगवंत त्यागी और तपस्वी थे। जिन्हें अनेक लोग वंदन करते थे। वेगवती ने हँसी में आरोप लगाते हुए लोगों से कहा कि इनको आप क्यों वंदन करते हो? इनमें क्या पड़ा है? मैंने तो स्त्री के साथ क्रीड़ा करते हुए इन्हें देखा है और इन्होंने उस स्त्री को दूसरी जगह भेज दिया है। यह सुनकर शीघ्र ही लोकमानस बदल गया । ऐसी बात !! विश्वस्त सूत्र जैसी अपने गाँव की लड़की वेगवती के मुंह से..... सबको विश्वास हो गया। महान पवित्र आत्मा होते हुए भी कुमारिका वेगवती ने सिर्फ उपहास में आरोप लगाया था, परंतु लोग कलंक की घोषणा सुनते ही मुनिश्री के प्रति दुर्भाव वाले बन गये । यह देखकर सुदर्शन मुनिश्री ने वेगवती के ऊपर द्वेष नहीं किया, परंतु अपने कर्मों का विचार कर अभिग्रह किया कि जब तक यह कलंक नहीं उतरेगा, तब तक मैं कायोत्सर्ग नहीं पारूंगा। कायोत्सर्ग के प्रभाव से देव ने वेगवती के मुख को श्याम व विकृत बना दिया, कोयले जैसा काला और टेढ़ा-मेढ़ा.... उसके पिताश्री यह देखकर आश्चर्यचकित हो गये... मेरी सुंदर लड़की को यह कौन-सा रोग हो गया.... " पुत्र । ! यह क्या किया ? कोई दवाई तो नहीं लगाई। कुछ उल्टा-सुल्टा तो नहीं किया !" श्रीभूतिने आश्चर्य से पुछा । www.jainelibrary.org

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