________________
कहीं मुरक्षा न जाए... 36
राजा मुनि को नमस्कार करके पुत्र के पास आया और कहने लगा कि, हे कुमारों ! वे मुनि तुम्हारे सांसारिक चाचाजी हैं। तुमने साधुओं को खूब परेशान किया है । अतः तुम्हें दंड़ दिया है। यदि दीक्षा लोगे, तो हड्डियाँ चढ़ा देंगे, अन्यथा तुम अपने आप ही तड़प-तड़पकर मर जाओगे, लेकिन मुनि भगवंत हड्डियाँ नहीं चढायेंगे। यह सुनकर कुमारों ने राजा की बात बिना इच्छा से मंजूर करते हुए कहा कि, " हम दीक्षा ले लेंगे ।" मुनि ने हड्डियाँ यथास्थान पर चढ़ा दी और दोनों ने चारित्र ग्रहण किया। चारित्र की शुद्ध आराधना करने लगे। भूतपूर्व पुरोहितपुत्र मुनि ने ब्राह्मण कुल का होने के कारण मल और मलिन वस्त्रों से घृणा की। इस प्रकार की जुगुप्सा करने से मिथ्यात्व गुणस्थानक पर आकर नीच गोत्र को बांध दिया। उसी तरह एक बार उसी मुनि को विचार आया कि "गुरुमहाराज ने जबरदस्ती से दीक्षा दी है, वह ठीक नहीं किया।" इस प्रकार उपकारी गुरु का दोष देखा। इस विचार से उसका दुर्लभबोधि कर्म का बंध हो गया। उसके बाद उस मुनि ने दोनों दोषों
की आलोचना नहीं ली। पाप वैसा का वैसा ही आत्मा में रह गया। दोनों चारित्र पाल कर देवलोक में गए। पुरोहित पुत्र ने मलिन वस्त्र की घृणा करने से नीच गोत्र बांधा था। अतः देवा पूर्ण होने पर एक चंडाल पत्नी की कुक्षि में उसका च्यवन हुआ।
इधर एक सेठ के घर पर सेठानी के मरे हुए बालक जन्म पाते थे । अतः उसका मन खिन्न रहता था। चंडालिनी ने उसकी खिन्नता का कारण पूछा, तब उसने कहा कि 'मेरे मरे हुए संतान जन्म पाते हैं। आज तक एक भी पुत्रो वात्सल्य नहीं दे सकी हूं।" चंडालिनी ने कहा कि "मेरे पुत्र जिन्द जन्म लेते हैं।" अतः सेठानी ने कहा कि मैं तुझे सोनामोहरें दूंगी। पुत्र जन्म के अवसर पर हम परस्पर संतान परिवर्तन कर लेंगे। इस प्रकार निर्णय कर दोनों ने जन्म के समय पुत्र अदल-बदल कर दिया । और उसका नाम मेतारज रखा। एक बार की घृणा ने मेतार्य के जी को चंडाल के घर में जन्म दिया।
T
१) सागरचंद्र मुनि राजपुत्र और पुरोहितपुत्र के संधिस्थानो से हड्डियाँ उतार कर चले गए।
Jain Education International
२) राजा गाँव के बाहर मुनि के पास गया bonal &srivate Use Only
191
www.janbrary.org