Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 75
________________ कहीं गुना न जाए....66 वास्तव में तापसकुमार भी धर्मसंकट में फँसा हुआ था। बुद्धि से काम लेने में न आये, तो गड़बड़ हए बिना नहीं रहेगी। राजा की प्रार्थना को स्वीकार कर वह राजकुमार के पास गया और उसको समझाने लगा। अरे ! मित्र ! यह क्या कर रहा है? आत्महत्या कितनी भयंकर है। तेरे। माता-पिता भी दुनिया में मुँह कैसे दिखायेंगे ? अरे मित्र ! परलोक में तेरा क्या होगा ? अरे मित्र ! त जिंदा रहेगा, तो शायद ऋषिदत्ता भी। वापस मिल जाएगी, परन्तु जल मरने पर तो कभी नहीं मिल सकेगी। पेड़ पर रात्रि में बैठे हुए पक्षी प्रातः होते ही अलग-अलग दिशा में उड़ जाने के बाद वापस मिलते हैं क्या ? नहीं, तो यहाँ पर भी ऐसा समझिये।। उचित बातें होने पर भी मनुष्य अपने मतलब की बात पकड़ लेता है। यदि जिंदा रहेगा, तो संभव है कि ऋषिदत्ता मिल भी जाएगी। इतना सुनते ही राजकुमार बोल उठा ! अरे मित्र ! यदि तू ऋषिदत्ता को ले आये, तो मैं जिंदा रह सकता हैं। इसके लिए तू जो मांगेगा, वह तुझे वरदान दूंगा। अरे मित्र ! सच बोल, क्या तूने ऋषिदत्ता को कहीं देखी है? "ज़रुर देखी है। विधाता के पास" तापसकुमार ने गंभीरता से जवाब दिया। राजकुमार ने कहा कि, "तू वहाँ जाकर उसे ले आ। तापसकुमार ने जवाब दिया कि, अगर मैं वहाँ जाऊँगा, तो मुझे वहाँ ही रहना पडेगा और ऋषिदत्ता यहाँ आ जायेगी। कोई बात नहीं त आये, तो ठीक, नहीं तो ऋषिदत्ता को जरुर भेजना। राजकुमार की यह बात सुनकर तापसकुमार ने कहा कि वरदान तो आप अब अपने ही पास रखिये और पर्दा करवा दीजिए। मैं ध्यान के बल से उसे आपके पास भेज दूंगा, परन्तु मैं वापस नहीं लौटूंगा। कनकरथ ने कहा खैर, कोई बात नहीं, आप उसे तो भेज दीजिये।। मनुष्य अपने स्वार्थ-साधना में कितना प्रवीण होता है? यह इससे सिद्ध हो जाता है कि जो मित्र के बिना एक पल भी नहीं रह सकता। था, वही राजकुमार ऋषिदत्ता के लिये मित्र को छोड़ने के लिये तैयार हो गया। ऋषिदत्ता का प्रकट होना... तापसकुमार पर्दे में गया और जटिका निकालकर ऋषिदत्ता के रूप में पर्दे से बाहर आया। सब के सामने ऋषिदत्ता प्रकट हई। तब उपस्थित लोग दांतो तले उंगली दबाने लगे और कहने लगे कि रूक्मिणी को छोड़कर ऋषिदत्ता के स्नेह में। राजकुमार आसक्त रहता था। यह उचित ही था कि अमृत को पाकर विष कौन पीएगा? अब राजकुमार को रूक्मिणी के प्रति और भी घृणा उत्पन्न हो गई। जिससे उसकी तरफ देखना भी बंद कर दिया। यह देखकर कद्रदान ऋषिदत्ता का मन व्यग्र हो उठा।। For Personal & Private Use Only Ain Education Intomational www.jainelibrary.org

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