Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 46
________________ 37...कहीं सुनना न जाए MATH बाज पक्षी को जौ चुगते हुए मुनि ने देख लिया यदि पूर्वभव में दोनों दोषों की आलोचना ले ली होती, तो जीव शुद्ध हो जाता और चंडाल मेतारज मुनि उपसर्ग को सहन करते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये। के घर में उत्पन्न होने की परिस्थिति खड़ी नहीं होती। अब आनंद से मेतार्य सेठ के घर बड़ा होने पत्नियों के पास. उसने १२ वर्ष की मुद्दत लगा। उसके जीव ने देवलोक में मित्रदेव को मंगवायी। फिर वह कर्म हल्का हो जाने से प्रतिज्ञा करवायी थी कि तुं मुझे डंडे मारकर भी प्रतिबोध पाकर चारित्र लेकर मेतारज मुनि दीक्षा दिलवाना। धीरे-धीरे मेतारज युवा हआ। मासक्षमण के पारणे के दिन सोनी के घर उसकी सगाई ८ श्रेष्ठिकन्याओं के साथ हई। जब गोचरी गये। शादी की तैयारियां चल रही थी, तब देव ने धर्मलाभ सुनकर सोनी अपना सभी अवधिज्ञान से सब जाना और वह मेतारज मित्र काम छोड़कर खड़ा हो गया। वह श्रेणिक को समझाने आया। परंतु दुर्लभबोधि हो जाने से राजा के लिये सुवर्ण के १०८ जौ बना रहा सोनी को शंका हुई कि मुनि ही लेकर गये वह नहीं समझा। फिर शादी के वरघोड़े में देव ने था। मुनि को गोचरी वहोराने के लिये होंगे। इसलिये वह मुनि के पास आरा। चंडाल का रुप धारण करके विवाह में विघ्न रसोईघर में ले गया। बाद में बाज पक्षी ने बारबार पूछने पर भी जीवदया के विचार से डाला। उसके बाद मेतारज की आजिज़ी से ८ वहाँ आकर सारे जौ चुग लिये। मुनि ने जो मनि ने उसका जवाब न दिया। मुनि मौन रहे। श्रेष्ठिकन्या और ९वीं राजकन्या श्रेणिक राजा की को चुगते हुए पक्षी को देख लिया। पक्षी अगर सत्य कह देते, तो बाज पक्षी को चीरकर पुत्री के साथ विवाह करवाया। परंतु दुर्लभबोधि उड़कर ऊँचाई पर बैठ गया। मुनि गोचरी सोनी जौ निकाल लेता। अतः सोनी ने क्रोध में कर्म के उदय से वह प्रतिबोधित न हुआ। १२ वर्ष लेकर बाहर निकले। आकर आर्द्र चमड़े को सिर पर बाँध कर मुनि के बाद फिर से देव उसे प्रतिबोध करने आया, तो सोनी ने खुद के काम पर आकर को धूप में बैठा दिया। धूप के कारण चमड़ा उस समय भी उसी कर्म के उदय के कारण अपनी देखा, तो सुवर्ण के जौ दिखाई नहीं दिये। सूखने से सिर की नसें खिंचने लगी। मुनि की

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