Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 55
________________ कहीं मुनसान जाए...46 10 रुपसेन के ७ मत बिगड़े... पृथ्वीभूषण नगर में कनकध्वज राजा की पुत्री का नाम सुनंदा था। राजकुमारी ने यौवन के आँगन में पदार्पण किया। उसका रूप लावण्य और सौंदर्य गज़ब था। एक दिन राजभवन के सामने पानवाले की दुकान पर बंगदेश के राजा वासुदत्त का चौथा खूबसूरत पुत्र रूपसेन पान खाने आया। वह इधर-उधर देख रहा था। इतने में सुनंदा की दृष्टि रूपसेन पर पड़ी। दृष्टि पड़ते ही उसके रोम-रोम में काम की ज्वाला धधक उठी। दासी के द्वारा सुनंदा ने रूपसेन को अपने अभिमुख किया। आँखों-आँखों से बात हो गई। सुनंदा ने दासी के द्वारा रूपसेन को कहलाया कि, "आप कौमुदी महोत्सव के प्रसंग पर राज-महल के पीछे के भाग में पधारना।" कौमुदी महोत्सव के दिन माया-कपट करके सुनंदा ने सिर-दर्द का बहाना बनाया और राजदरबार में स्वयं की दासी के साथ रह गई। राजा-रानी परिवार सहित गाँव के बाहर महोत्सव देखने चले गए। कैसी भयंकर है वासना? जिसके कारण सुनंदा असत्य बोली व उसने माया की। इसी प्रकार रूपसेन भी माया और असत्य से बहाना बना कर घर में ही रह गया। शेष परिवार महोत्सव में चला गया। रूपसेन स्वगृह पर ताला लगाकर सुनंदा से मिलने के मनोरथ से घर से निकल पड़ा। आँख के दोष से प्रेरणा पाकर कायिक दोष सेवन की इच्छा से वह मन में सुनंदा के रूप, लावण्य और उसके संगम के विचारों को लेकर हर्षित होता हआ रास्ते से गुजर रहा था। इतने में एक जीर्ण मकान की दीवार उस पर गिर पड़ी। वह उसी के नीचे दब कर मर गया। कैसी भयंकर विचार श्रेणी में मरा? मिला कुछ भी नहीं। परन्तु वह जीव राग दशा को बढ़ाकर पाप बांध कर मृत्यु को प्राप्त हुआ। H For Personal 8. Private Use Only www.jainelibrary.org

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