Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 72
________________ 63...कहीं नुनमा न जाए क्या कहूं उसकी विनय शीलता? क्या बताऊँ, उसका रूप व सौन्दर्य, इत्यादि बातें करते रात्रि पूर्ण हो, गई। सुबह होते ही काबेरी से मंत्रीजी आये। उन्होंने प्रयाण के लिए निवेदन किया। तब राजकमार ने कहा कि मेरा मित्र तापसकुमार यदि वहाँ साथ चलेगा, तो मैं आऊँगा, अन्यथा नहीं। तापस कुमार को बहत मनाया गया। अंत में राजकुमार ने उससे कहा कि आप एक बार तो मेरे साथ चलो, शादी होने के बाद मैं आपको यहां पर पहुँचाने आऊँगा। इतना कहने-सुनने के बाद तापसकुमार चलने के लिए तैयार हुआ। सभी ने वहाँ से प्रयाण किया। काबेरी पहुंचने के बाद राजकुमार कनकरथ के साथ राजकुमारी रूक्मिणी की धामधूम से शार्द, हो गई। बहुत दिनों तक कनकरथ ससुराल में ही रहा। राजकुमारी ऋषिदत्ता की याद में वह उद्विग्न रहता था और उदासीनता में अपना समय व्यतीत करता था। आखिर भंड़ा फूटा... एक दिन राजकुमार उदासीन मुद्रा में बैठे हुए थे, तब रूक्मिणी ने राजकुमार से पूछा कि "आप उदास क्यों रहते हो? ऐसी कैसी ऋषिदत्ता थी कि मेरे जैसी सुन्दर पत्नी मिलने पर भी आप उसको भूलते नहीं हैं?" तब राजकुमार ने का कि "तू तो रूप लावण्य में उसके सामने कुछ भी नहीं है। अरे ! हिमालय पर्वत के सामने तू राई समान है। कहाँ उसका रूप, कहाँ उसका लावण्य और कहाँ उसकी गुणों की माला...! उसके मरने के बाद मेरे पिताजी ने आग्रह किया। इसलिए मैं शादी करने आया हँ, अन्यथा तेरे से शादी करने आता ही नहीं।" यह सुनते ही रूक्मिणी की आत्मा में अहंभाव जाग उठा और वह जोर से बोल उठी। यह तो सारी मरी करामात थी, जिससे आपके पिताजी ने आपको यहां पधारने के लिए कहा। अन्यथा आपके पिताजी भी नहीं कहते। यह कहकर उसने अपनी चतुराई बताने के लिए किस प्रकार सुलसा तापसी द्वारा यह काम करवायाँ ? यह सारी घटना सुना दी। षड्यंत्र का भंडा फूट गया, “पाप छुपाये न छुपे... छुपे तो मोटे भाग, दाबी दुबी ना रहे रुई लपेटी आग..." Nan Education Intematon For Personal & Private Use Cory

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