Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 64
________________ 55...कहीं मुना न जाए 13 एक थी राजकुमारी... ऋषिदत्ता AM राजकुमारी धर्मात्मा बनी... गंगापुर नाम का नगर था। उसमें गंगादत्त नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी गंगा रानी से गंगसेना नाम की पुत्री हुई। राजकुमारी गंगसेना साध्वीजी महाराज से प्रतिबोध प्राप्त कर धार्मिक बन गई। जैन धर्म का सार समझकर उसने यौवनावस्था में ब्रह्मचर्य स्वीकार कर लिया। वह आयंबिल आदि तपश्चर्या में जीवन बिताने लगी। कलंक देने का प्रायश्चित नहीं लिया... संगा नाम की एक गरीब श्राविका थी। उसने साध्वीजी से प्रतिबोध पाकर दीक्षा ली। दीक्षित बनने के बाद वह बहुत तपश्चर्या करने लगी। ज्ञान-ध्यान-तप में लीन बनी हुई साध्वीजी ने साधना के द्वार ऐसी सिद्धि प्राप्त की, जिससे उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गयी। जिससे लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। यह देखकर राजकुमारी गंगेसना को ईर्ष्या के कारण यह प्रसिद्धि सहन न हई। उसको लगा कि यह मेरी प्रतिस्पर्धिनी है और लोग की प्रशंसा-पात्र बनी है। लोग पहले मेरी प्रशंसा करते थे और अब उसकी कर रहे हैं! नहीं... यह नहीं चलेगा। अतः मैं इसको लोगों की दृष्टि में किसी तरह भी नीचे गिरा दूं। इस प्रकार ईर्ष्या में आकर उसने साध्वीजी संगाश्रीजी पर कलंक लगाया कि यह तो राक्षसी है। दिन में तपश्चर्या करती है और रात्रि में मुर्दे खाती है। इस प्रकार बारंबार लोगों को कहने लगी। कहा जाता है कि, एक झूठी बात जब सौ बार कहने में आये, तब लोग उसे सच मान लेते हैं। राजकुमारी होने के कारण समाज पर उसका प्रभाव था और धर्मात्मा का चोला पहने हुई थी। इसलिए लोगों का विश्वास पाना सहज था। अतः लोग उसकी बात को सत्य मानने लगे। "संगा साध्वी राक्षसी है..!!" . हाथी के दांत खाने के दूसरे और दिखाने के दूसरे.... बाहर से तपस्वी और अंदर से ऐसी हीनवृत्ति... छि ! धिक्कार है.... मुँह में राम, बगल में छुरी। समता की सरिता समान साध्वीजी संगा..... चुपचाप उसने यह कलंक सहन SHOWNationainmenational Paypistians

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