Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 62
________________ 53... कहीं मुरक्षा न जाए 12 लक्ष्मणा साध्वीजी ने Jain Education International AAYVA •स्पष्ट आलोचना नहीं ली। आज से ८०वीं चौविशी के पहले अन्तिम तीर्थंकर के शासन में लक्ष्मणा नाम की एक राजकुमारी थी। विवाह के समय शादी के मंडप में ही वह विधवा हो गई। श्रावक धर्म का पालन करती हुई शुभ दिन को उसने दीक्षा अंगीकार की। बाद में अनेक को प्रतिबोध देकर अनेक शिष्याओं की गुरुणी बनी। एक दिन चिड़ा-चिड़ी की संभोग क्रिया को देखकर लक्ष्मणा साध्वी विचार करने लगी कि अरिहंत भगवान ने संभोग की अनुमति क्यों नहीं दी ? अथवा भगवान अवेदी थे, अतः वेद वाले जीवों की वेदना उन्हें क्या मालूम ? ऐसा विचार क्षणमात्र के लिये उसे आया। फिर उसे पश्चात्ताप हुआ कि मैंने यह गलत विचार किया है, क्योंकि अरिहंत भगवान तो सर्वज्ञ होते हैं। अतः सर्वजीवों की वेदना जान सकते हैं। For Personal & Private Use Only 620X600 YY STO www.jainelibrary.org

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