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47...कहीं सुना न जाए
इधर रात्रि के समय नगर में शून्यता जान कर महाबल नामक जुआरी, चोरी करने के लिए निकल पड़ा। घूमते-घूमते उसने राजभवन के पृष्ठ भाग में लटकती हुई रस्सी की बनी सीढ़ी देखी। राज भवन में प्रवेश का यह सुन्दर साधन है। यह मान कर वह चढ़ने लगा। सुनंदा की दासी रस्सी की आवाज़ से विचार करने लगी कि जिस रूपसेन को संकेत किया था, वही आया होगा। इतने में रानी ने स्वयं की दासियों को राजकुमारी का स्वास्थ्य पूछने के लिए भेजा। वे भवन की तरफ आ रही थी। सुनंदा की दासी ने दीपक बुझा दिया। अन्तेवासी दासी ने स्वास्थ्य पच्छा के लिए आयी हई दासियों से कह दिया कि राजकुमारी को अब नींद आ गई है, इस प्रकार झूठ बोलकर रानी की दासियों को वापस भेज़
दिया। रस्सी की सीढ़ी से ऊपर चढ़कर महाबल राजमहल में प्रवेश करने लगा, तब दासी ने अंधकार में ही उसका सत्कार किया और स्वागत करते हुए मंद स्वर से कहा कि पधारिये रूपसेन ! आवाज़ मत कीजिये। पधारिये ! पधारिये ! जआरी विचार करने लगा कि यहां न बोलने में नौ गुण हैं। अतः हूं-हूं करता हुआ सुनंदा के
पास पहुंच गया और अंधेरे में ही कुकर्म करके चला गया। विधि की विचित्रता से १) सुनंदा ने गर्भपात करवाया।
दीवार से दब कर मरा हुआ रूपसेन का जीव सुनंदा की कुक्षि में ही उत्पन्न हुआ।
कुछ समय बीतने पर सुनंदा के शरीर पर गर्भवती के लक्षण दासियों को नज़र |
आने लगे। दासियों ने सुनंदा को क्षार आदि गर्भ गलाने की दवाइयाँ पिलाई, २) सुनंदा के पति राजाने सर्प को मार दिया।
फलस्वरूप रूपसेन का जीव भयंकर वेदना प्राप्त कर कुक्षि से च्युत हो गया। वहां
से मरकर वह सर्पिणी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ और काल क्रम से सर्प बना। इधर सुनंदा का विवाह क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा के साथ हो गया। एक दिन राजा-रानी बगीचे में घूमने-फिरने के लिए गए। वहाँ अचानक (रूपसेन का जीव) सर्प आ पहुंचा। सुनंदा को देखते ही स्नेहवश सर्प की दृष्टि उस पर स्थिर हो गई। सर्प को इस प्रकार स्थिर दृष्टि वाला देखकर सुनंदा भयभीत हो गई। उसके पति ने सर्प को शस्त्र से मार डाला। सर्प आर्तध्यान में मर गया।
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