Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 59
________________ कहीं मुनसा न जाए...50 सुनंदा साध्वी एक बार अवधिज्ञान से रुपसेन के जीव को हाथी बना हआ जानकर हाथी को प्रतिबोध देने के लिए जंगल में जा रही थी। तब गांव के लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, परन्तु साध्वीजी किसी की भी सुने बिना एक जीव को प्रतिबोध करने के लिए जंगल में गई। मदोन्मत्त हाथी की दृष्टि सुनंदा पर पड़ते ही वह चित्रवत् स्थिर हो गया। तब साध्वीजी ने कहा - "बुज्झ-बुज्झ रूवसेण, अरे रूपसेन ! बोध प्राप्त कर, बोध प्राप्त कर।" मेरे प्रति स्नेह रखने की वजह से तू इतने दुःखों का शिकार होने पर भी मेरे प्रति स्नेह को क्यों नहीं छोड़ता ? इस प्रकार के वचन सुनने से हाथी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। उसने पूर्व के ७ भवों की दुःखमय श्रृंखला देखी। वह खूब पश्चात्ताप करने लगा। अरर ! मैंने यह क्या कर दिया ? अज्ञान दशावश मोह के अधीन होकर आर्तध्यान में मरकर दुर्गति में गया। अब मुझे दुर्गति नहीं देखनी है। इस प्रकार विचार करते हुए हाथी मन में जागृत हुआ। साध्वीजी ने राजा को कहा कि अब यह हाथी तुम्हारा साधर्मिक है। इसका ध्यान रखना। हाथी बेले-तेले वगैरह तप करके देवलोक में गया। इस कथा से हम समझ सकते हैं कि मन और दृष्टि का पाप कितना भयंकर होता है? उसकी आलोचना न ली, तो रूपसेन के ७-७ भव बिगड़ गए। आलोचना का कैसा अद्भुत प्रभाव है कि साध्वीजी सुनंदा गुरुमहाराज के पास पापों की शुद्धि करके साध्वी बनकर शल्यरहित शुद्ध संयम पालन कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गई। अतः इस बात को आत्मसात् कर आलोचना लेकर शुद्ध बनना चाहिये। PACKET सुनंदा साध्वीजी हाथी को प्रतिबोध दे रही है। Use Only an d ion Intermallkuals el www.jainelibrary.org

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