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कहीं मुनसान जाए...38
7 चित्रक और संभूति चंडाल बने...
आँखे बाहर निकल गयी। खून निकलने लगा। हड्डियाँ टूटने लगी। मुनि ने क्रोध नहीं किया, समता रखकर केवलज्ञान प्राप्त किया। मुनि मोक्ष में गये। उस समय लकड़े का गट्ठर गिरने से आवाज होने पर घबरा कर बाज पक्षी ने विष्टा की। उसमें सोनी को जौ देखे। यह देखकर सोनी घबरा गया कि यह मुनि तो निर्दोष है और राजा के भूतपूर्व दामाद है। इस निर्दोष मुनि का मैंने खून कर दिया। अब राजा मुझे कर सज़ा करेंगे, इसलिये उसने भगवान महावार स्वामी के पास जाकर दीक्षा ली और वह आलोचना लेकर सद्गति में गया। __अब यह विचारना चाहिये कि यदि पूर्वभव में मेतारज ने गुरु के दोष देखने की आलोचना ले ली होती, तो दुर्लभबोधि न बनते औ ऐसी विंडबनाएँ न होती। ऐसा जानकर हमें गुरु के दोष देखने की आलोचना तुरंत ले लेनी चाहिये। मुनि का हत्यारा सोनी मुनि बन आलोचना लेकर सद्गति में गया। अतः हम 3.लोचना लेना न भूलें।
जंगल से एक मुनि गुज़र रहे थे। रास्ता भूल जाने के कारण दोपहर के समय बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। गाय चराने के लिए आये हुये चार ग्वालों ने इस दृश्य को दूर से देखा। वे नज़दीक आये। मुनि बेहोश थे। होठ सूख गए थे। चेहरा कुम्हला गया था। तृषा का अनुमान कर उन्होंने गाय को दुहकर मुँह में दूध डाला। इससे मुनि होश में आये। कुछ समय के बाद मुनिश्री ने चारों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि संसाररूपी जंगल में उनकी आत्मा भटक रही हैं। उस दुःख से पार उतरने के लिये एकमात्र साधन है चारित्र धर्म। इस प्रकार का बोध दिया। चारों ने प्रतिबोध पाकर चारित्र ग्रहण किया। उनमें से दो आत्माएं तो उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चली गई।
शेष दो जनों को एक विचार आया कि स्नान किये बिना शुद्धि किस प्रकार से हो सकती है? क्या इतने मैले कपड़े रखने? इस प्रकार घृणा करने से नीच गोत्र कर्म बांध दिया। उसकी आलोचना लिये बिना ही काल कर गये। बाद में क्रम से पूर्व भव में बांधे हुए नीच गोत्र के उदय से चंडालकुल में चित्रक व संभूति के रूप में उत्पन्न हुए।
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