Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 37
________________ कहीं सुनता न जाए...28 उनमें से एक साध्वीजी ने अपने मन को दृढ़ रखा। उन्होंने विचार किया कि अरिहंत भगवान का संयम मार्ग ऐसा है कि उसका पालन करने से रोग आता ही नहीं। रोग तो असमाधि का कारण है। रोग आए या बढ़े, तो उससे तो असमाधि होती है। | उस असमाधि को प्रोत्साहन मिले, ऐसा भगवान बतायेंगे ही | क्यों? उस साध्वीजी के खून की बूंद-बूंद में भगवान के शासन की श्रद्धा उछल रही थी। वह दूसरी साध्वियों को अनेक रीति से समझाती थी, परन्तु कोढ़ रोग के भय के कारण दूसरी साध्वियाँ समझती नहीं थी। इसलिए उस छोटी साध्वीजी को खूब पश्चाताप हुआ। अरे प्रभो! मैंने अनादेय नामकर्म वगैरह कैसे अशुभ कर्म बांधे हैं? जिससे सच्ची बात समझाने पर भी ये साध्वियाँ समझती नहीं हैं। इस प्रकार पश्चाताप और आत्म-निंदा, काउस्सग्ग आदि करते करते उसे केवलज्ञान हो गया। केवलज्ञानी की महिमा करने के लिए देवदेवियाँ आई। दूसरी साध्वियों को विचार आया कि अरर! हमने बड़ी भूल की है। उन्होंने केवलज्ञानी के पास आलोचना कर प्रायश्चित लेकर आत्मशुद्धि कर ली। परन्तु रज्जा साध्वी आलोचना लिए बिना । मर कर अनंत भव भ्रमण करने वाली बनी। सचित पानी न पीनेवाली साध्वीजी को केवलज्ञान हुआ और देव-देवी महिमा करने के लिए आयें low famelibrary.crg in Education For Personal & Private Use on

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