Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 42
________________ 33...कहीं सुना न जाए. आर्द्रकुमार ने दीक्षा लेने का संकल्प किया। माता-पिता के पास आर्यदेश में जाने की आज्ञा मांगी। मोहवश माता-पिता ने सख्ती से इन्कार कर दिया और वह भाग न जाये, इसलिये राजा ने पाँचसौ सिपाहियों को उस पर नज़र रखने के लिये आज्ञा की। आर्द्रकुमार को यह परिस्थिति कैद-सी लगने लगी। उसने धीरे-धीरे वर्तन-वाणी के माधुर्य के द्वारा ५०० सिपाहियों का विश्वास जीत लिया। एक दिन मौका देखकर वह घोडे पर सवार होकर अनार्य देश से रवाना हो गया। उसके बाद समुद्र मार्ग से जहाज में बैठकर आर्यदेश में आकर उसने दीक्षा ली और उसी समय देववाणी हुई कि, अरे ! आर्द्रकुमार अभी तेरे भोगावली कर्म बाकी है, परंतु भावोल्लास में आकर उसने देववाणी को सुनी अनसुनी कर दी। __संयम लेकर मुनि एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करने लगे। एक बार मुनि आर्द्र वसंतपुर नगर में पधारे और उद्यान में काउस्सग्ग ध्यान में रहे। वहाँ बालिकायें खेलने के लिये आयी। खेल-खेल में बालिकायें उद्यान में स्तंभ को पकड़ कर कहती कि ये मेरा पति है। श्रीमती नाम की बालिका ने (जो पूर्वभव की पत्नी देवलोक से च्युत होकर धनश्री शेठ के यहाँ पुत्री रुप में जन्मी थी) अनजाने स्तंभ की तरह स्थिर रहे हुए मुनि को छूकर कहा कि यह मेरा पति है। फिर पता चला कि यह तो मुनि है। परंतु पूर्वभव के संस्कारों के कारण उसने घोषणा की, कि मैं विवाह करूंगी, तो इस मनि के साथ ही करूंगी, अन्यथा कुंवारी रहूंगी। देवों ने १२.५ लाख.. Use only दीक्षा के लिए आर्द्रकुमार अनार्य देश में भागकर स्थलमार्ग और जलमार्ग के द्वारा आर्य देश में आए।

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