Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 33
________________ श्रीलसन्नाह को वस्तुस्थिति समझते देर न लगी। वह विचार करने लगा-अरे ! मैं तो चारों दिशाओं में ख्यातनाम एक ब्रह्मचारिणी की सेवा करने आया था। ओह ! पानी में से आग उठी है। कहाँ जाऊँ ? धिक्कार हो इस कामवासना को ! क्या इस कामग्नि में मैं भी भस्मीभूत हो जाऊंगा? नहीं, नहीं...... मुझे कहीं पर चले जाना चाहिए। यहाँ रहना उचित नहीं है। क्या पता कब उसकी कामाग्नि मेरे आत्मदेह को जला कर भस्म कर देगी? मेरी आत्मा को अपने पंजे में ले, इससे पहले ही मैं किसी दूसरे राज्य में चला जाऊँ! कहीं सुनसान जाए... 24 इस प्रकार विचार कर वह राज्य छोड़कर चला गया। वह शीलसन्नाह मंत्री विचारसार नामक दूसरे राजा के पास गया और वहाँ उसने मंत्रीपद की याचना की। अनेक परीक्षा करने के बाद विचारसार राजा ने कहा कि, "आपकी बुद्धि की परीक्षा के बाद हमें विश्वास है कि आप मंत्रीपद के स्थान को सुशोभित कर सकोगे। परंतु विशेष विश्वास के लिए इतना ही पूछना है कि क्या आपने इससे पहले किसी राजा की सेवा की है? तो उसका नाम बताइए। " उसने जवाब दिया- "माफ कीजिएगा! मैं उसका नाम नहीं बताऊँगा, क्योंकि उसका नाम लेने से हाथ में लिया हुआ ग्रास भी छोड़ना पड़ता है।" राजा ने कहा - "आप यह क्या कह रहे हैं? क्या किस नाम लेने मात्र से ग्रास छोड़ना पड़ता है? आप गप तो नहीं हाँक रहे हैं। लो! अभी भोजन मंगवाता हूँ।" इस प्रकार कह कर राजा ने भोजन का थाल मंगवाया। हाथ में एक ग्रास (कवल) लेकर शीलसन्नाह से कहा कि अब उस राजा का नाम बोलिए। तब उसने कहा, “रूक्मिणी।” इतना उच्चारण करते ही एक संदेशवाहक ने आकर राजा से कहा - "चलिए, जल्दी चलिए। शत्रुओं ने राज्य पर आक्रमण कर दिया है। विकट परिस्थिति खड़ी हो गई है। अपनी सेना पीछेहट कर रही है। हार-जीत का सवाल है। आप शीघ्र पधारिये।" राजा ने तुरंत हाथ में लिया हुआ कवल थाली में डाल दिया और युद्ध के लिए प्रयाण किया। शीलसन्नाह भी साथ में गया। युद्ध की सीमा पर राजा को रोक कर शीलसन्नाह ने युद्धभूमि में प्रवेश किया कि तुरंत ही ... उसे मारने के लिए शत्रु सैनिक सामने आने लगे। युद्धभूमि में प्रवेश करते ही उन सैनिकों को शीलसन्नाह के ब्रह्मचर्य के प्रति अनुराग के कारण शासन- देवी ने स्तंभित कर दिए और आकाशवाणी की कि, "ब्रह्मचर्य में आसक्त शीलसन्नाह को नमस्कार हो।" इस प्रकार घोषणा करके देवताओं ने उस पर पुष्पवृष्टि की।

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