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रूक्मिणी की दृष्टि राजसभा में शीलसन्नाह मंत्री के ऊपर स्थिर हो गई।
एक दिन राजसभा में शीलसन्नाह मंत्री बैठा था। राज-सिंहासन पर बैठी हई रुक्मिणी चारों ओर दृष्टि घूमा रही थी। इतने में यौवन और लावण्य जिसके अंग-अंग में विकसित हो गया था, उस शीलसन्नाह मंत्री पर दृष्टि गिरी, गिरते ही दृष्टि वहीं स्थिर हो गई। "अहो ! इस मानव का इतना रूप है? अरे ! यौवन छलक रहा है। ऐसे मन में कुविचारों का चक्र प्रारंभ हो गया और दृष्टि में विकार आ गया।
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