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21...कहीं सुना न जाए
आलोचना के बिना मुरझाए फूल...
सक्मिणी के एक लाख भव...
क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा की पुत्री ले सकते, न पति का मिलन भी होता है। इसलिए राज्याभिषेक किसका किया जाये ? | रूक्मिणी ने यौवन वय में कदम रखा ही था अतः जलकर मरने का विचार छोड़ दे और कुछ मंत्रियों की ओर से यह सूचना थी कि । कि राजा ने उसका विवाह योग्य राजकुमार के अपना जीवन धर्म अनुष्ठान में लगा दे। रूक्मिणी यद्यपि पुत्री है, तथापि पवित्र आत्मा। साथ कर दिया, परन्त विवाह होते ही उसका उसकी पूर्ण व्यवस्था राज्य की ओर से हो है। अतः उसे ही राजगद्दी पर बिठाना उचित । पति यमशरण हो गया। बालविधवा हो जाने जायेगी। धर्म अनुष्ठान में व्यस्त रहने से तू है। सभी ने स्वीकृति प्रदान की। राजगद्दी पर । से वह भयभीत हो गई। निराधार होने का सरलता से ब्रह्मचर्य पाल सकेगी। तेरा चित्त बैठने के बाद भी रूक्मिणी शद्ध ब्रहमचर्य का उसे जितना दुःख नहीं था, उससे भी अनेक धर्म अनुष्ठानों से ओत-प्रोत हो जायेगा। पालन करती थी। इससे उसकी कीर्ति चारों गुना दुःख उसे आजीवन ब्रहमचर्य पालने की
रूक्मिणी ने पिताश्री के वचनों को दिशाओं में व्याप्त हो गई। असमर्थता में लगा। वह अग्नि में कूदने की मान्य कर अपने विचारों को बदल दिया। दिन । रूक्मिणी के ब्रह्मचर्य गुण की ख्याति तैयारी करने लगी। तब उसके पिता ने उसे प्रतिदिन वह अधिकाधिक धर्मसाधना करने से आकर्षित होकर एक ब्रहमचर्य प्रेमी समझाया कि अग्नि में जल मरने से लगी। उसमें ब्रह्मचर्य के गुणों का भी विकास बुद्धिमान युवक, जिसका नाम शीलसन्नाह आत्महत्या का पाप लगता है। आत्महत्या से होने लगा। इस गुण के प्रताप से उसकी था, वह मंत्रीपद के लिए आया। उसका यह महान दुर्गति भी होती है। हत्या करने वाले यशोगाथा गाँव-गाँव में पहुँच गई। इसी बीच विचार था कि भरण-पोषण भी होगा और एक जीवन में प्रायश्चित ले सकते हैं, लेकिन उसके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय कुछ गुणवान् आत्मा की सेवा भी होगी। सद्भाग्य आत्महत्या करने से परलोक में न प्रायश्चित मंत्रियों ने विचार किया कि राजा निष्पुत्र है, से उसे मंत्रीपद भी मिल गया।
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