Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 16
________________ 7...कहीं सुनसा न जाए उसके बाद व्यापार शुरु किया, तो व्यापार में भी पापानुबंधी पुण्य ने साथ दिया और छप्पर फाड़ कर पत्नी का यौवन टिकाने के पैसा दुकान में बरसने लगा। अब पाप करने में मां-बाप अर्गला के समान भासित होने लगे। अतः उन पर प्रलोभन से और निराबाध मौजतिरस्कार, नफ़रत व अपमान की वर्षा शुरू कर दी। अहो! उपकारियों के प्रति कृतज्ञ भावना के बदले मजे से घूमने-फिरने के शौक के कृतघ्न बन गया। पिटाई कर उनकों धक्का देकर घर में से बाहर निकाल दिया। रहने के लिए उन्हें छोटी- कारण गर्भपात करवाकर पंचेन्द्रिय सी झोपड़ी दे दी। उन्हें अलग कर मैं मौज-मजे से रहने लगा। अब तो मोह ने और भी जोर पकड़ा। एक जीवो की हत्या करवाई। वात्सल्यमय तरफ जवानी और दूसरी ओर पैसे की सत्ता अर्थात् कुछ भी कमी न रही। नौकर और दूसरी गरीबी की माता बनाने के बदले मेरी लालसाओं शिकार बनी हुई महिलायें मेरी वासना की हताशन में भस्मसात् बन गयी। अरे ! मैं तो पागल ही बन ने पत्नी को कोमल, निर्दोष, असहाय, गया! मानो यही स्वर्ग है ! मुझे क्या मालूम था कि इस मौज-मजे की वजह से असंख्य वर्ष की अशरण ऐसे मेरे ही खून के अंश से बने हुए कितनी भयंकर सजा होगी? वासना के अतिरिक्त टेक्स बचाने के लिए अफसरों के साथ घूमने बालकों की नृशंस राक्षसी हत्यारी बना दी। फिरने जाते समय शराब और शेरे पंजाब होटलो में मांसाहारी भोजन का भी स्वाद लिया। अरे! स्व-बालकों को मारने की नृशंसता तो शायद पशुओं में भी नहीं होती है। मेरी वासना क्या कहँ गुरुदेव? मेरी काली आत्मकथा। अंडे का आमलेट, चीकन का स्वाद भी मेरी की वाइरस बीमारी आस-पास के व्यक्तियों को इस जीभ ने चख लिया। अरर! मैंने यह क्या किया? पंचेन्द्रिय की हत्या! अरे! मेरा क्या अपनी चपेट में लेने लगी। यह सब याद आने पर होगा? नरक सिवाय मुझे अन्य गति नहीं मिलेगी। ऐसी मेरी करतूते हैं। मेरे जीवन में अनेक चीख निकलती है कि हे गुरुदेव! मेरा क्या होगा? पापों ने अपना डेरा डाल दिया। मुझे इसका भान भी न रहा। "बबूल के वृक्ष बोनेवाले को काँटे ही मिलेंगे, आम कभी नहीं"-इस सिद्धान्त को तो मैं बिल्कुल भूल ही गया। एक बार नसीब ने साथ दिया और कॉलेज में मानसिक आधि, शारीरिक व्याधि और बाह्य उपाधियों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया। प्रॉफेसर की नौकरी मिल गयी। उसमें एक विद्यार्थिनी मानो मेरा नूर ही खो गया। तेज नष्ट हो गया। मानो मैं पृथ्वी पर कचल दिया गया। मेरे पास ट्युशन के लिये आती थी। मेरी पत्नी को दोसर्वनाश की भयंकर खाई के किनारे पर खड़ा हो गया । अब भी इस बात का स्मरण चार दिन के लिये बाहर जाना हुआ। ट्युशन के बहाने से करते हुए आँखों में अंधेरा छा जाता है। एकान्त का मैदान मिल गया। वासना का शिकार बनकर मेरी आत्मा विद्यागुरु के स्थान पर शैतान बन गई। गुरुone ade ode oped by PROMPEddieo शिष्य के पवित्र संबंध को मैंने कलंकित कर दिया। Jain Education Intemational

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