Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 23
________________ - आलोचना का प्रायश्चित्त किसे दिया जाए? कहीं भुनभा न जाए...14 आवाज से आलोचना ___ शास्त्र में कहा है कि - करवाते हैं, परन्तु जान-बूझकर पाप छिपानेवाले को याद कहे। ७) जहाँ शोर नह सुज्झइ ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं। नहीं कराते। शास्त्र में कहा है कि - बहुत हो, वहाँ गुरु उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसे॥१॥ कहेहि सव्वं जो वुत्तो जाणमाणे गुहई। को ठीक तरह से कर्मरज जिन्होंने दूर कर दी है, ऐसे परमात्मा के न तस्स दिति पायच्छित्तं बिंति अन्नत्थ सोहय॥१॥ सनाई न दे, ऐसे : शासन में कहा गया है कि शल्य (छिपाए हुए पाप) सहित न संभरइ जो दोसे सब्भावा न य मायाओ। स्थान में आलोचना : कोई भी जीव शुद्ध नहीं होता है। क्लेश रहित बनकर पच्चक्खी साहए ते उ माइणो उ न साहइ।।२।। कहे। ८) आलोचना : सभी शल्यो को दूर करके ही भास सभी शल्यों को दूर करके ही जीव शुद्ध बनता है। अतः कोई ओघ-सामान्य ढंग से ऐसे कह दे कि मैंने का प्रायश्चित लेकर शुद्ध होने के लिए आलोचना अवश्य कहनी चाहिए। अनेक पाप किए हैं, सभी का प्रायश्चित दे दीजिए और रहत लोगों को खुद के जीवन में जिस किसी भाव से जान जानते हुए भी अपने दोषों को छुपाये, तो उस व्यक्ति को सनायें, जिससे शट : बूझकर या अनजाने में पाप किए हों. उसी भाव से भी प्रायश्चित नहीं दिया जाता, दूसरे गुरु के पास शुद्धि सयमी आमा : कपटरहित होकर बालक की तरह गुरुदेवश्री से उन पापों करना ऐसा कह देते हैं। परन्तु एक-एक पाप याद करके कह दे और जो पाप वास्तव में याद न आये, उसका ओघ में खुद का गौरव बढे। का कहदा उस हा प्राचारपत दिया जाता ह आ ९ जोडल : आत्मा शुद्ध होती है। परन्तु माया के कारण अमक पापों से प्रायश्चित मांगे, तो प्रायश्चित दिया जाता है। आज तक अनंत आत्माओं ने आलोचना कहने से मोक्ष प्राप्त हो, ऐसे अगीतार्थ को को हृदय रूपी गुफा में छुपाकर रखे, उसे केवलज्ञानी आलोचना कहे । " : जानते हए भी प्रायश्चित नहीं देते तथा छदमस्थ गरू भी किया है। शास्त्र में कहा है कि दो तीन बार सुनें और यदि उन्हें यह ज्ञात हो जाए कि निट्ठियपापपंका सम्मं आलोइउं गुरुसगासे। १ मुझे धिक्कारेंगे : जीव माया के कारण स्वयं के पापों को छिपा रहा है, तो पत्ता अणंतजीवा सासयसुखं अणाबाहं ॥१॥ फटकारेंगे, ऐसे भय से उसे गरुदेव प्रायश्चित नहीं देते | : उसे गुरुदेव प्रायश्चित नहीं देते और कह देते हैं कि दूसरे अर्थात् पापरूपी कीचड़ का जिन्होंने नाश किया : के पास प्रायश्चित लेना, परन्तु जिस व्यक्ति को है, ऐसे अनंत आत्माओं ने गुरु के पास सुन्दर रीति से रन वाले गुरु के ज्ञानावरणकर्म आदि दोषों के कारण पाप याद नहीं आते आलोचना लेकर बाधा से रहित ऐसे अनंत शाश्वत सुख अ..आलोचना कहे। : हो, तो गुरुदेवश्री भिन्न-भिन्न प्रकार से उसको याद को प्राप्त किया है। www.jainelibrary.org

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