Book Title: Paschattap
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 20
________________ 11... कहीं मुरझा न जाए प्रायश्चित देनेवाला गुरु पत्थर के घड़े जैसा होता हैं। जिसमें से एक बूंद भी बाहर न निकल पाये। अतः तू कोई काल्पनिक भय या लज्जा मत रखना। शास्त्रों में ऐसे-ऐसे दृष्टांत आते हैं कि माता और पुत्र, पति-पत्नी जैसे पाप करने वाले जीव आलोचना से शुद्ध हो गये, पति-पत्नी बनकर पाप से भारी बने हुए भाई-बहिन आलोचना के द्वारा शुद्ध हो गये। अरे! उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पहुँच गए। अरे पुण्यशाली आत्मा ! तू मेरी एक बात सुन ले। महानिशीथ सूत्र में कहा है कि आलोचना लेने के भाव का भी एक ऐसा महाप्रभाव हैं कि आलोचना सुनाते-सुनाते कितने ही महापुरुषों ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। अमुक आत्माओं ने तो आलोचना शुद्धि का इतना प्रायश्चित आया हैं, इतना सुनते ही केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। आये हुए प्रायश्चित को वहन करते-करते कितने ही आत्माओं ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। ज्यादा तो क्या कहूँ? आलोचना सरलतापूर्वक कह देने की तीव्र उत्कण्ठा से उठकर भवोदधितारक गुरुदेवश्री के पास जाते-जाते बीच में ही कितने ही भव्यात्माओं ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। धन्य हो उन महापुरुषों को! धन्य हो उनकी शुद्ध बनने की उत्कंठा को! तू भी ऐसा ही महापुरुष भविष्य में बनेगा। अरे महात्मन्! तू भी अनेक जीवों का तारणहार बनेगा, क्योंकि तूने अपनी आत्म-भूमिका शुद्ध बना ली हैं। अब यह मुख्य रूप से ध्यान रखना कि सद्गुरु का योग मिलने के पश्चात शुद्ध आलोचना न कही, तो रूक्मिणी आदि के समान अनेक भावी जीवन बिगड़ जाएंगे। तू ऐसा मत मानना कि "गुरुदेवश्री मुझे हल्का मानेंगे। अर! बाहर से इतना धर्मी दिखने वाला मानव अंदर से कितना श्याम!" क्योंकि शास्त्रों के जानकार • गुरुदेवश्री ने तो शास्त्र और अनुभव के बल पर तुझ से भी अनेक गुने पापात्माओं का जीवन जाना हैं। वे इस तथ्य को समझे हुए हैं कि पाप करने वाला खराब होने पर भी पाप की आलोचना लेने वाला महान आराधक हैं। पापभीरु आत्मा ही आलोचना लेने के लिए तैयार होती हैं। पापभीरुता यह तो आत्मा का गुण हैं। ऐसे गुणवाले के प्रति धिक्कार आ जाए, तो प्रमोदभाव चला जाए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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