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(२४)प्र०-अरिहन्त तथा सिद्ध का आपस में क्या अन्तर है ?
इसी तरह आचार्य आदि तीनों का भी आपस में
क्या अन्तर है ? उ०-सिद्ध, शरीररहित अत एव पौद्गलिक सब पर्यायों
से परे होते हैं। पर अरिहन्त ऐसे नहीं होते। उन के शरीर होता है, इस लिये मोह, अज्ञान आदि नष्ट हो जाने पर भी ये चलने, फिरने, बोलने आदि शारीरिक, वाचिक तथा मानसिक क्रियाएँ करते रहते हैं । सारांश यह है कि ज्ञान-चारित्र आदि शक्तियों के विकास की पूर्णता अरिहन्त सिद्ध दोनों में बराबर होती है। पर सिद्ध, योग ( शारीरिक आदि क्रिया) रहित और अरिहन्त योगसहित होते हैं। जो पहले अरिहन्त होते हैं वे ही शरीर त्यागने के बाद सिद्ध कहलाते हैं । इसी तरह प्राचार्य, उपाध्याय और साधुओं में साधु के गुण सामान्य रीति से समान होने पर भी साधु की अपेक्षा उपाध्याय और अाचार्य में विषेशता होती है । वह यह कि उपाध्यायपद के लिये सूत्र तथा अर्थ का वास्तविक ज्ञान, पढ़ाने की शक्ति, वचन-मधुरता और चर्चा करने का सामर्थ्य आदि कुछ खास गुरम प्राप्त करना जरूरी है, पर साधुपद के लिये इन गुणों की कोई खास जरूरत नहीं है। इसी तरह आचार्यपद के लिये शासन चलाने की शक्ति, गच्छ के हिताहित की जवाबदेही, अतिगम्भीरता और देश-काल का विशेष
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