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[ ११ ] (१६)प्र०-इस समय विज्ञान प्रबल प्रमाण समझा जाता है,
इस लिये यह बतलाइये कि क्या कोई ऐसे भी वैज्ञानिक हैं जो विज्ञान के आधार पर जीव को
स्वतन्त्र तत्त्व मानते हों ? उ०-हाँ, उदाहरणार्थ सर 'ओलीवरलाज' जो यूरोप
के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और कलकत्ते के 'जगदीशचन्द्र वसु, जो कि संसार भर में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। उन के प्रयोग व कथनों से स्वतन्त्र चेतन तत्त्व तथा पुनर्जन्म आदि की सिद्धि में सन्देह नहीं रहता । अमेरिका आदि में और भी ऐसे अनेक विद्वान हैं, जिन्हों ने परलोकगत आत्माओं के सम्बन्ध
में बहुत कुछ जानने लायक खोज की है। (२०)प्र०-जीव के अस्तित्व के विषय में अपने को किस
सबूत पर भरोसा करना चाहिए ? उ०-अत्यन्त एकाग्रतापूर्वक चिरकाल तक आत्मा का ही
मनन करनेवाले निःस्वार्थ ऋषियों के वचन पर,
तथा स्वानुभव पर । (२१)प्र०-ऐसा अनुभव किस तरह प्राप्त हो सकता है ? उ०-चित्त को शुद्ध कर के एकाग्रतापूर्वक विचार व
मनन करने से । .' * देखो-यात्मानन्द-जैन-पुस्तक-प्रचारक-मण्डल आगरा द्वारा प्रकाशित हिन्दी प्रथम "कर्मग्रन्थ" की प्रस्तावना पृ० ३८ ॥
देखो-हिन्दीग्रन्थरत्नाकरकार्यालय, बंबई द्वारा प्रकाशित 'छायादर्शन'
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